Thursday 26 July 2018

बांदा जिले के तालाब Near of Belatal

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ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र में एक वामदेव ऋषि रहा करते थे, जिनके नाम पर इसको बांदा कहा जाने लगा था। इस जिले की भूमि भी पहाड़ी, पठारी, ऊँची-नीची, खन्दकी है। खन्दकी खन्दकों जैसी भूमि होने से वर्षा ऋतु में समूचे खन्दक छोटे-छोटे तालाबों में तब्दील हो जाते हैं, भूमि दलदली हो जाती है।

बाघन नदी जिले को दो भागों-उत्तरी-पूर्वी एवं दक्षिणी-पश्चिमी में विभाजित करती है। जिले की नीची भूमि मार पड़ुआ एवं काली कावर है लेकिन जो ऊँची भूमि वाला क्षेत्र है, उसे पाठा क्षेत्र कहा जाता है। पाठा क्षेत्र में पानी का अभाव है, भूमि रेतीली-सी, अनुपजाऊ है। नदियों की कछारों और पहाड़ों की पटारों की भूमि गीली एवं दलदली रहती है, जिसमें धान की खेती अधिक होती है। बांदा में विभिन्न प्रकार का धान (चावल) पैदा किया जाता है जो जिले से बाहर दूर-दूर तक निर्यात किया जाता है।

पाठा क्षेत्र (Upland Area)-पाठा (पठारी) क्षेत्र कर्बी एवं मऊ तहसीलों के मध्य का भूभाग है। यह टौरिआऊ, पथरीला, पठारी, ऊँचा, पहाड़ी एवं जंगली क्षेत्र है। भूमि राँकड़ है। जहाँ कहीं थोड़ी-सी काबिल काश्त भूमि है वहाँ कोल, भील, कौंदर एवं सहरिया (बनवासी) आदिवासी जातियों की झोपड़ियों वाली बस्तियाँ हैं। यह बांदा जिले का आदिवासी बहुल क्षेत्र है। वर्षा ऋतु (खरीफ) के मौसम में इस पाठा क्षेत्र में कोदों पैदा हो जाता है।

इस क्षेत्र में विन्ध्य की पहाड़ियाँ फैली हुई हैं। पहाड़ी, पथरीला भूभाग होने से ही इसे ‘पाठा’ (Upland Area) कहा गया है। पठार के मध्य दूर-दूर भरके नुमा तालाब भी हैं। जिनका ही पानी आदिवासी लोग पीते हैं। आदिवासी महिलाएँ टौरियाँ पहाड़ियाँ चढ़ते-उतरते दूर-दूर से मिट्टी के घड़ों में पानी लाती हैं। पहाड़ियों और टौरियों के मध्य एक भौंरा तालाब है जिससे आदिवासी महिलाएँ पानी लाते भारी कष्ट सहती हैं। परेशान होकर वे कह उठतीं है, “भौंरा तेरा पानी गजब कर जाय। गगरी न फूटे खसम मर जाय।” पाठा क्षेत्र के लोग जंगली जलाऊ लकड़ी बेचकर उदरपोषण करते हैं। कहा जाता है, “यह पाठा के कोल, जिनका प्यास भरा इतिहास है। इनका भूख भरा भूगोल है।”

बांदा जिले की यमुना, केन, चन्द्रावल, बाघन, पयश्विनी, चान, बरदाहा एवं गरारा नदियों की कछारी दलदली भूमि में वर्षा ऋतु में धान की खेती की जाती है। जिले में जो तालाब हैं, वह खुदेलुआ एवं छोटे निस्तारी हैं जिनसे कृषि के लिये कम पानी लिया जाता है। प्रमुख तालाब निम्नांकित हैं-

1. नवाब टैंक बांदा- नवाब जुल्फिकार अली ने यह तालाब बनवाया था जो नगर का निस्तारी तालाब है।

2. अलवारा तालाब, राजापुर- चित्रकूट जनपद के ग्राम राजापुर में अलवारा जन निस्तारी तालाब है।

3. खार तालाब, सीमू- बवेरू परिक्षेत्र के सीमू ग्राम में खार तालाब है, जो खुदेलुआ है। एक बड़ी बँधिया-सा है, कम गहरा है। यह तालाब जाड़ों के अन्त तक सूख जाता है।

4. दुर्गा तालाब, तरौहा- दुर्गा तालाब कर्बी से 5 किलोमीटर की दूरी पर, तरौहा के निकट स्थित है। यह बड़ा तालाब है। जननिस्तारी तालाब होने के साथ ही इससे कृषि सिंचाई के लिये भी पानी लिया जाता है।

5. राजा तालाब, बांदा- राजा तालाब बांदा के बुन्देला राजा गुमान सिंह (भूरागढ़) ने बनवाया था। यह तालाब बस्ती के मध्य में था जिसके चारों ओर खिरकों के रूप में बस्ती थी। वर्तमान में बांदा नगर का विकास होने से इसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।

6. फुटना तालाब, बड़ा कोटरा- यह चन्देली तालाब है। जो मऊ तहसील के अन्तर्गत है। यह तालाब फूट चुका है। इसीलिए लोग इसे फुटना तालाब कहते हैं।

7. कोठी तालाब, कटोेरा तालाब एवं गणेश तालाब, कर्वी- यह तालाब विनायक राव मराठा ने बनवाये थे। तालाब सुन्दर एवं जन निस्तारी है। गणेश तालाब पर गणेश मन्दिर है।

8. गौंड़ा का फूटा तालाब- यह तालाब नरैनी क्षेत्रान्तर्गत है जो चन्देल काल का है। यह दो पहाड़ों के मध्य छोटा बाँध बना कर बनाया गया है। यह सुन्दर बड़ा तालाब रहा, परन्तु जल भराव की अधिकता और देख-रेख की कमी के कारण फूट गया था जिससे इसे फूटा ताल कहा जाता है।

9. कालिंजर के तालाब- जिला बांदा तहसील नरैनी में कालिंजर पहाड़ पर कालिंजर किला है। किला की उत्तरी तलहटी में कालिंजर बस्ती है। कालिंजर किला भारत के प्रसिद्ध किलों में से एक है। कालिंजर पहाड़ के ऊपर, किले के अन्दर के प्रांगण में पत्थर काट-काटकर अनेक सुन्दर तालाबों का निर्माण किया गया था। चन्देल नरेशों के बनवाये तालाबों में गंगा सागर, मझार ताल, राम कटोरा, कोटि तीर्थ तालाब, मृगधारा शनिकुंड, पांडु कुण्ड, बुढ़िया का ताल, भैरों बाबा की झिरिया (भैरों कुण्ड), मदार तालाब, ब्राम्हण तलैया (बिजली तालाब) प्रसिद्ध हैं। पहाड़ के नीचे बस्ती में बेला ताल एवं गोपाल तालाब हैं।

10. लोखरी के तालाब- जिला बांदा, तहसील मऊ के अन्तर्गत लोखरी ग्राम है। ग्राम की कालिका देवी पहाड़ी की तलहटी में चन्देलकालीन प्राचीन तालाब है। इसी के पास कोटा कंडेला मन्दिर के पास भी एक छोटा तालाब है जो जन-निस्तारी है।

11. मड़फा के तालाब- नरैनी तहसील अन्तर्गत मड़फा पहाड़ पर कालिंजर के समकाल का विशाल चन्देली किला है। किले के अन्दर मन्दिर से संलग्न पत्थर काट कर विशाल सुन्दर तालाब का निर्माण किया गया था, जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसी के पास एक छोटा तालाब भी है, जिसमें केवल वर्षा ऋतु में पानी रहता है।

12. रासिन के तालाब- नरैनी तहसील अन्तर्गत के रासिन कस्बा है, जो चन्देल काल में पहाड़ी पर था। चन्देल काल का एक तालाब पहाड़ पर पत्थर काट कर बनाया गया था। जो लम्बाकार है। एक दूसरा छोटा तालाब पहाड़ी के नीचे बलन बाबा मार्ग पर है।

13. लामा के तालाब- बांदा से चिल्ला मार्ग पर 13 किमी. की दूरी पर लामा ग्राम है, जहाँ 5 तालाब हैं जो बोलवा, धोविहा, गुमानी, मदाईन एवं इमिलिहा हैं। यह सब निस्तारी तालाब हैं।

14. अरहर एवं मानिकपुरा ग्रामों में भी छोटे-छोटे एक-एक तालाब हैं।

महोबा जिले के तालाब

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वर्तमान का जिला महोबा, पूर्वकालिक हमीरपुर जिला का दक्षिणी भूभाग है, जो पहाड़ी, पथरीला एवं टौरियाऊ ढालू है। इस क्षेत्र में बन रहे हैं। अधिकांश भूमि राकड़ है। कुछ भूमि दुमट और काली है। फिर भी मुरमयाऊ राकड़ मिट्टी अधिक है। पहाड़ियों, टौरियों के होने से बरसाती धरातलीय प्रवाहित होते जाते जल को संग्रहीत करने के लिये चन्देल राजाओं ने सर्वप्रथम तालाबों के निर्माण को सरल और उपयोगी समझा। महोबा तो चन्देलों की राजधानी ही थी, जिसे उन्होंने मालाकार तालाबों की करधनी पहनाकर जलमय नगर बना दिया था। महोबा में निम्नांकित तालाब हैं-

महोबा नगर के तालाब- महोबा नगर चन्देल राजाओं की राजधानी थी। ऐसी लोक धारणा है कि त्रेता युग में महोबा केकपुर नाम से जाना जाता था, जबकि द्वापर युग में इसे पत्तनपुरा कहा जाता था। पत्तनपुरा सातवीं सदी में एक सामान्य खेड़ा अथवा ग्राम था। इसी पत्तनपुरा में चन्द्रब्रम्ह ने महोत्सव कराया था। महोत्सव सम्पन्न होने पर पत्तनपुरा का नाम महोत्सवपुरी रखा गया था जिसे कालान्तर में महोबा कहा जाने लगा था। चन्द्रब्रम्ह चन्देलों के आदि पुरुष थे और महोबा उनका मूल ठिकाना था। चन्देल राजाओं ने महोबा नगर के चारों ओर मालाकार रूप में सुन्दर विशाल सरोवरों का निर्माण कराकर, इसे आकर्षक, मनोरम एवं जलमय नगरी बना दिया था।

1. राहिला सागर- यह सरोवर महोबा नगर के दक्षिण-पश्चिम में 3 किलोमीटर की दूरी पर है, जो चन्देल राजा राहिल देव (890-910 ई.) ने बनवाया था। इसका बाँध विशाल, लम्बा चौड़ा एवं सुदृढ़ है। इसके बाँध पर तेलिया पत्थर से सुन्दर राहिला सूर्य मन्दिर बनवाया गया था। यह सूर्य मन्दिर बाँध के पश्चिमी पार्श्व में आज भी दर्शनीय है। राहिला मन्दिर में सूर्य देव की प्रतिमा लगभग 4 फुट ऊँची बलुआ पत्थर की आराधना मुद्रा में है। राहिला सागर को सूरज कुंड भी कहा जाता है।

2. विजय सागर, महोबा- यह तालाब महोबा के पूर्वी अंचल में कानपुर मार्ग पर है, जिसका निर्माण राजा विजय वर्मा चन्देल (1040-50 ई.) ने कराया था। यह तालाब बहुत बड़ा तथा गहरा है। गहरा एवं विशाल होने के कारण इसे नौका विहार और स्वीमिंग पूल के रूप में पर्यटक झील का स्वरूप दिया जा सकता है। इसके बाँध पर प्राचीन बस्ती थी जिसके खंडहर अब भी देखे जाते हैं। बस्ती में बरगद के पेड़ थे जो अभी भी खड़े हुए हैं। सन 1855 ई. में अंग्रेज इंजीनियर बर्गेस ने इस तालाब के बाँध में सलूस बनवाकर, कृषि सिंचाई के लिये पानी निकालने का प्रबन्ध कर दिया था। तालाब के बाँध की बस्ती का नाम बीजा नगर कहा जाता था। इसी कारण इस तालाब को बीजा सागर भी कहा जाता रहा है।

3. कीरत सागर, महोबा- यह तालाब चन्देल राजा कीर्ति वर्मा (1053-1100 ई.) ने बनवाया था, जो महोबा नगर के दक्षिणी पार्श्व में है। इसका बाँध तेलिया पत्थर की पैरियों से बना है। यह विशाल तालाब है, जिसका जल सदा निर्मल एवं स्वच्छ रहता है। इस तालाब में कमल पैदा होता है। इसका भराव क्षेत्र 18 किलोमीटर है। इस तालाब को स्थानीय लोग किरतुआ तालाब भी कहते रहे हैं जिसमें चन्देल राजघराने की बहू-बेटियाँ अपनी सखियों सहित श्रावण मास की प्रतिपदा को कजलियाँ विसर्जित करने समारोह पूर्वक जाया करती थीं। परमाल राजा के शासनकाल में सन 1182 ई. में पृथ्वीराज चौहान ने चन्देल राज्य महोबा पर आक्रमण करते हुए, कजलियाँ विसर्जन के अवसर पर चन्देल राजकुमारी चंद्रावल के अपहरण हेतु इसी तालाब पर युद्ध लड़ा था, जिसमें चन्देलों की ओर से आल्हा-ऊदल ने शौर्यपूर्वक मुकाबला कर पृथ्वीराज चौहान की सेना को पराजित कर महोबा से खदेड़ दिया था।

कीरत सागर ऐतिहासिक तालाब है। इसके बाँध के पीछे एक मुरमीली पहाड़ी है जिसके शिखर पर दो समाधियाँ बनी हुई हैं, जो ताला सैयद एवं झालन की कही जाती हैं। ताला सैयद एवं झालन आल्हा ऊदल के सहयोगी एवं सहायक थे। यहीं पर आल्हा की बैठक बनी हुई है जो तेलिया पत्थर की पटियों (चीरों) से बनी है।

4. मदन सागर तालाब, महोबा- मदन सागर तालाब, मदनवर्मा चन्देल (1129-1162) ने अपने नाम पर बनवाया था, जो महोबा नगर के दक्षिणी पार्श्व में स्थित है। इस तालाब का प्राकृतिक परिवेश अति रमणीक है। तालाब के बाँध पर अनेक प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाएँ बिखरी हुई हैं। तालाब के उत्तरी-पश्चिमी भाग में एक उभरी पथरीली चर्र (पटपरिया) पर शिव मन्दर है, जिसे ककरामठ कहा जाता है। ककरामठ के पास ही एक सुन्दर बैठक थी, जिस पर बैठकर राजा सरोवर का सौंदर्य निहारा करते थे। ककरामठ के पास ही दूसरी चर्च पर विष्णु मन्दिर एवं बैठक थी जो वर्तमान में ध्वस्त हो चुके हैं।

मदन सागर तालाब से चन्देल राजाओं की ऐतिहासिकता जुड़ी हुई है। इस तालाब के उत्तरी पार्श्व की पहाड़ी पर चन्देलों का किला था, जिसके दो पश्चिमी एवं पूर्वी दरवाजे थे, जिन्हें क्रमशः भैंसा एवं दरीवा दरवाजे कहा जाता था। चन्देलों की आराध्य मनिया देवी का मन्दिर भी यहीं पर है। तालाब के दक्षिणी भाग में बड़ी चन्द्रिका देवी, शिव गुफा एवं काँठेश्वर शिव का मन्दिर है यहीं दक्षिणी-पूर्वी भाग में जैन अतिशय क्षेत्र है जिसके समीप छोटी चन्द्रिका देवी का मन्दिर गोरखी पहाड़ी पर था। यह गोरखी पहाड़ी गुरु गोरखनाथ की तपःस्थली थी। इसी कारण इसे गोरखी पहाड़ी कहा जाता है। इस पहाड़ी में दो अन्धेरी एवं उजाली गुफाँए भी हैं। इसी पहाड़ी की तलहटी में शिव ताण्डव मन्दिर है। शिव ताण्डव मन्दिर के पास एक अनूठी अनन्य प्रतिमा ‘पठवा के बाल महावीर’ की है, जो दर्शनीय है। यहाँ पास ही में एक चट्टान में ‘काल भैरव’ की उत्कीर्ण प्रतिमा है। मदन सागर बाँध पर सिद्ध बाबा का मेला भरता है जो कजलिया मेला के बाद लगता है।

5. कल्याण सागर, महोबा- इस तालाब का निर्माण बीर बर्मा चन्देल राजा (1242-86 ई.) ने कराया था, जिसका नाम अपनी रानी कल्याण देवी के नाम पर रखा था। यह सरोवर महोबा के पूर्व में कानपुर-सागर मार्ग पर है। कल्याण सागर तालाब, मदन सागर एवं विजय सागर तालाब के मध्य दोनों से मिला हुआ है। इसके बाँध पर सतियों के चीरा लगे हैं, सिंह वाहिनी देवी, बल खंडेश्वर महादेव एवं चामुंडा देवी मंदिर बने हुए हैं। ऐसा लगता है कि इस बाँध पर चन्देलों के शमशान रहे होंगे।

6. श्रीनगर तालाब- श्रीनगर ग्राम महोबा-छतरपुर बस मार्ग पर स्थित है। यहाँ दो सुन्दर तालाब हैं, जो बुन्देला शासनकाल के हैं। प्रथम बड़ा तालाब कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस तालाब को मोहनसिंह बुन्देला ने बनवाया था। एक दूसरा छोटा तालाब भी यहाँ है।

7. मकरवाई तालाब- प्राचीन समय में मकरवाई परिक्षेत्र अहीर जाति के अधिकार में था, जिसे बाद में मकरन्द राजपूत ने छीनकर अपने अधिकार में ले लिया था। उसी ने मकरवाई ग्राम बसा कर एक सुन्दर तालाब का निर्माण कराया था। तालाब के बाँध पर शिव मन्दिर है।

8. गढ़ा तालाब, कुल पहाड़- कुल पहाड़ में बुन्देला शासनकाल का बना हुआ गढ़ा तालाब है। यह गहरा है एवं बड़ा भी है। गहरा होने के कारण ही इसे गढ़ा तालाब नाम मिला है। इसके बाँध पर मन्दिर है। स्नान घाट भी सुन्दर बने हुए हैं।

9. महामन तालाब, खरेला- खरेला बड़ा ग्राम है जो मुस्करा परगना में है। यहाँ चन्देलकालीन बड़ा तालाब है। बाँध पर कजलियों का मेला भरता है।

10. ब्रम्ह सरोवर, कबरई- कबरई में चन्देल राजा परमाल देव के पुत्र ब्रम्हा का बनवाया हुआ, विशाल झील-सा ब्रम्ह सरोवर तालाब है। इसकी पाल (बाँध) बहुत लम्बी-चौड़ी है जिसमें पत्थरों की बड़ी-बड़ी पैरियों का प्रयोग किया गया है। इसके बाँध पर विशाल शिव मठ था। तालाब के मध्य की एक पटपरिया (पठार) पर चन्देलों की बैठक एवं सैरगाह थी।

इस सरोवर में गाद, गौंड़र एवं कीचड़ अधिक भर गई है। यदि इसका कचड़ा निकालकर पूर्ववत साफ करा दिया जाए तो यह बुन्देलखण्ड के दर्शनीय तालाबों में होगा।

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11. बेला ताल, जैतपुर- जैतपुर (बेलाताल) झाँसी-मानिकपुर रेलवे का एक स्टेशन है। जैतपुर बस्ती से 3 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में विशाल तालाब बेला तालाब है। कुछ लोग इसे वाला वरमन चन्देल का बनवाया हुआ बतलाते हैं, जबकि यह चन्देल राजा परमालदेव के पुत्र ब्रम्हा का बनवाया हुआ है। इसका नाम ब्रम्हा ने अपनी रानी बेला के नाम पर बेला तालाब रखा था। इस तालाब का भराव क्षेत्र 15 किमी. का है। तालाब के बाँध पर शिवाला था जो आज ध्वस्त है। तालाब के पश्चिमी पार्श्व में छत्रसाल के पुत्र जगतराज ने एक छोटा-सा किला बनवाया था जो टूटा-फूटा है। कुछ हिस्सा मराठों ने तोड़ दिया था। स्थानीय लोग इसे केशरी सिंह का बनवाया कहते हैं।

अंग्रेजी काल में बेला ताल के बाँध पर जलनिकासी हेतु सलूस लगवाया गया था। नहरें बनवाई गई थीं जिससे सैकड़ों हेक्टेयर की कृषि सिंचाई होने लगी थी।

सन 1855 ई. में बेला तालाब के साथ ही विजय सागर तालाब, दशपुर तालाब, थाना तालाब, मदन सागर, कीरत सागर, कल्याण सागर, नैगुआं, टीकामऊ तालाबों में सलूस लगवाकर कृषि सिंचाई सुविधा बढ़ाई गई थी। सन 1914 ई. में मझगवां तालाब की 52 किमी. लम्बी नहर, कुल पहाड़ तालाब से 1924 ई. में 8 किमी. की नहर, बेला तालाब, रैपुरा, कमलपुर तालाबों से 110 किलोमीटर लम्बी नहरें बनवाई गई थीं। सन 1973-74 में अर्जुन नहर, कवरई नहर, केवलारी चन्द्रावल नहरें 426 किमी. लम्बी बनी थीं।

12. चरखारी नगर के तालाब- चरखारी नगर महोबा से 15 किलो मीटर की दूरी पर 25.24 उत्तरी अक्षांश एवं 79.48 पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। चरखारी नगर के चारों ओर माला (LINKED) तालाब हैं। चरखारी का सौन्दर्य तालाब हैं, जिसे तालाबों का नगर कहा जाता है।

चरखारी महाराजा छत्रसाल पन्ना के द्वितीय पुत्र जगतराज जैतपुर के ज्येष्ठ पुत्र कीरत सिंह के दूसरे पुत्र खुमानसिंह की राजधानी था। जब जगतराज जैतपुर में रहते थे तो यदाकदा यहाँ की चरखैरी पहाड़ी पर चरखैरों (हिरणों) का शिकार खेलने आया-जाया करते थे। उन्हें चरखैरी पहाड़ी का प्राकृतिक सौन्दर्य पसन्द आया, तो उन्होंने 1758 ई. में मंगलवार के दिन पहाड़ी पर किला निर्माण की आधारशिला रखी। परन्तु उसी वर्ष उनका स्वर्गवास हो गया था। बाद में जगतराज के उत्तराधिकार को लेकर पहाड़ सिंह और ज्येष्ठ भ्राता के पुत्रों गुमान सिंह, खुमान सिंह में पारिवारिक कलह हो गया था। जिसका समापन पहाड़ सिंह ने अपने दोनों भतीजों गुमानसिंह, खुमान सिंह को भूरागढ़, बाँदा एवं चरखारी के राज्य देकर कलह शान्त कर दिया था।

खुमान सिंह को चरखारी का स्वतन्त्र राज्य मिला तो उन्होंने किला निर्माण कार्य पूर्ण करवाकर, उसका नाम मंगलगढ़ रखा था। किला पहाड़ी (चरखैरी) के नीचे बस्ती बसाकर, उसका नाम भी चरखैरी के नाम पर चरखारी रख दिया था। खुमान सिंह के पश्चातवर्ती राजाओं ने नगर के चारों ओर नगर सौन्दर्य एवं जन-जल सुविधा हेतु तालाओं का निर्माण कराकर, इसे तालाबों की नगरी के रूप में पहचान दी थी। जिसका ब्योरा इस प्रकार है-

विजय सागर तालाब, चरखारी- यह तालाब चरखारी नरेश विजयसिंह (1782-1823 ई.) ने किला की तलहटी में दो पहाड़ियों के मध्य चरखारी नगर के किनारे बनवाया था।

रतन सागर तालाब- रतन सागर तालाब चरखारी नरेश रतनसिंह (1829-60 ई.) ने बनवाया था, जो नगर सीमा में संलग्न है।

जय सागर तालाब- यह तालाब चरखारी नरेश जयसिंह (1860-80 ई.) ने दीवान तातिया टोपे की देख-रेख में बनवाया था, जो नगर से संलग्न है।

मलखान सागर, चरखारी- यह सरोवर चरखारी नरेश मलखान सिंह ने सन 1882 ई. में बनवाया था। यह भी नगर के किनारे सुन्दर तालाब है। गोवर्धन नाथ का मन्दिर इसी मलखान सागर पर है।

गुमान सागर, चरखारी- यह सरोवर चरखारी नरेश गुमान सिंह ने बनवाया था।

सुदामापुरी तालाब, चरखारी- सुदामापुरी तालाब भी नगर सीमा से संलग्न है।

किला मंगलगढ़ के तालाब- किला मंगलगढ़ में पहाड़ का पत्थर काटकर, बिहारी तालाब, मंडना तालाब एवं काकुन तालाब बनवाये गए थे।

चरखारी नगर के चारों ओर, एक दूसरे से संलग्न 7 तालाब-कोठी तालाब, गोलाघाट तालाब, जय सागर तालाब, बंशिया तालाब, रपट तलैया, विजय सागर एवं मलखान सागर हैं। इनके मध्य के नगर से बाहर की ओर को आवाजाही मार्ग हैं। तालाबों के बाहर सुन्दर मनोरम पहाड़ियाँ हैं जिनसे तालाबों की शोभा निखर उठती है।

दसपुर तालाब- महोबा के उत्तर में दसपुर ग्राम में बड़ा तालाब है। इस तालाब से कृषि सिंचाई हेतु नहरें निकाली गई हैं। यहाँ बच्छराज एवं दच्छराज बनाफरों का पुराना किला है।

टोला तालाब- यह महोबा के निकट पिकनिक मनाने वालों के लिये मनोरम तालाब है।

इनके अतिरिक्त महोबा जिले में पहरा तालाब, तेली पहाड़ी तालाब, पवाँ तालाब, विलखी तालाब, उरवारा तालाब, पसनहाबाद तालाब, सिजहरी तालाब, पठारी तालाब, कदीम तालाब, छतरवारा तालाब, नरैरी तालाब, अखारा तालाब, रावतपुरा खुर्द तालाब, सैला माफी तालाब, सारंगपुर तालाब, बौरा तालाब, भड़रा तालाब, दमौरा तालाब, मिरतला, दिदवारा तालाब, गुर हरौ तालाब, मनकी तालाब, नरवारा तालाब, मजगुवां तालाब एवं पिपरा तालाब हैं।

Friday 25 May 2018

छतरपुर जिले का सबसे सुंदर अंग्रेजों द्वारा बसाया गया नौगांव नगर अब 175 साल का हो गया है

छतरपुर जिले का सबसे सुंदर अंग्रेजों द्वारा बसाया गया नौगांव नगर अब 175 साल का हो गया है। आज गुरुवार सुबह 11 बजे नगर के जीटीसी ग्राउंड पर अनेक कार्यक्रम आयोजित करके धूमधाम से स्थापना दिवस मनाया जाएगा। स्थापना दिवस के मौके पर सांस्कृतिक एवं अन्य कार्यक्रमों के जरिए नगर की स्थापना से लेकर आज तक के गौरवशाली इतिहास को प्रस्तुत किया जाएगा। कार्यक्रम में दिल्ली, मुंबई, ग्वालियर, रायपुर, गुजरात, हैदराबाद आदि शहरों में बसे नगरवासी भी शामिल होकर अपने शहर के गौरवशाली कार्यक्रम के गवाह बनेंगे।

नगर के इतिहासकार दिनेश सेन ने बताया कि नौगांव नगर की स्थापना 1842 में अंग्रेजी हुकूमत के मिस्टर डब्ल्यू एस सिलीमेन ने एक बिग्रेड सेना के सैनिकों के ठहरने के लिए नौगांव छावनी के नाम से की गई है। देशी 36 रियासतों के बीच में होने के कारण अंग्रेजी अफसरों ने इस जगह सबसे पहले नगर का नाम नौगांव छावनी पड़ा। सन 1842 में अंग्रेजी हुकूमत के सिलीमेन अधिकारी ने जैतपुर बेलाताल की रियासत में नयागांव दूल्हा बाबा मैदान और जैतपुर बेलाताल की ओर आक्रमण कर दिया जिसमें महाराज पारीक्षत पराजित हो गए तथा अंग्रेजों की हुकूमत बेलाताल तक हो गई। इस तरह से अब अंग्रेजी हुकूमत 36 रियासतों तक फ़ैल गई।

इन सभी रियासतों को कंट्रोल करने एवं उनसे लगान वसूलने के लिए नौगांव छावनी की स्थापना की गई थी। जिसके लिए ब्रिटिश हुकूमत ने छतरपुर के तत्कालीन महाराज प्रताप सिंह से 19 हजार वार्षिक किराए पर नौगांव में कुछ जमीन ली थी।

इस जमीन पर अंग्रेजी अफसर डब्ल्यू एस सिलीमेन ने सन 1842 से सन 1861 तक सेना की एक टुकड़ी को इसी जमीन पर तम्बू तानकर रखा। इसके बाद इसी जमीन पर अंग्रेजी अफसरों ने नौगांव छावनी का पहला भवन निर्मित कराया। इसी भवन में अंग्रेजी हुकूमत के समय 36 देशी रियासतों पर प्रभावी नियंत्रण बनाये रखने के लिए अंग्रेजी सरकार का पोलिटिकल एजेंट रहता था। जहां 36 रियासतों के राजा पॉलिटिकल एजेंट से मिलने एवं लगान चुकाने के लिए आते थे।

175 वर्ष में क्या खोया, क्या पाया, नौगांव की जुबानी

मैं नौगांव अपनी दुर्दशा एवं उपेक्षा पर स्वयं आंसू बहा रहा हूं। आजादी के पहले मेरा स्वर्णिम समय चल रहा था, आजादी के बाद भी कुछ समय अच्छा रहा। आज से करीब 175 वर्ष पहले मैं एक मैदान के रूप में खाली था, उसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने मुझे नौगांव छावनी का रूप दिया । बाद में मुझे 36 रियासत पर कंट्रोल करने के लिए प्रयोग किया । उसके बाद जब मुझे विंध्य प्रदेश की राजधानी बनाया गया, जब मेरा स्वर्णिम समय था, पहले मुख्यमंत्री कामता प्रसाद सक्सेना का कार्यालय यहीं था। इसके बाद मध्य प्रदेश के गठन के बाद मेरा बुरा दौर शुरू हुआ,यहां से कई आफिस छतरपुर , सागर, सतना और भोपाल चले गए, मैं देखते देखते वीरान हो गया। राजधानी से मैं महज तहसील बन कर रह गया। इन 175 वर्षों में मैंने खोया बहुत कुछ है, लेकिन पाया कुछ नहीं है। आज मेरी स्थिति ऐसी है की स्वच्छता के मामले में प्रदेश में मेरा नंबर 78 वां हैं। कभी मैं स्मार्ट सिटी की श्रेणी में आता था लेकिन आज गंदगी से पटा पड़ा हूं।

अंग्रेजों के जुल्मों सिलम

का गवाह है नौगांव

नगर के 88 वर्षीय नाथूराम सेन बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत के अफसर बड़े ही जालिम थे। उस समय वह जेल में सप्लाई का काम करते थे, गलती करने पर तत्काल सजा का प्रावधान रखा जाता था। पॉलिटेक्निक कॉलेज में स्थित जेल में गलती करने वाले अपराधी को फांसी घर में लटकाया जाता था। थोड़ी सी गलती पर जेल के अंदर बनी काल कोठरी मे डाल दिया जाता था।

विंध्य प्रदेश के गठन के बाद 15 अगस्त 1947 से 11 अप्रैल 1948 तक नौगांव प्रदेश की राजधानी रहा। जिसमें आज के आदर्श प्राइमरी स्कूल में विधानसभा का सचिवालय हुआ करता था। इसी तरह सिंचाई विभाग का मुखालय और चीफ कंज्वेटर फाॅरेस्ट के भवनों में आज सिविल अस्पताल संचालित हो रहा है। टीबी अस्पताल में सर्जन आफिस संचालित होता था। एडीजे कोर्ट परिसर में हाईकोर्ट और सेसन कोर्ट का संचालन होता था। वर्तमान के सेल्स टैक्स कार्यालय में आर टीओ मुख्यालय, कैनाल कोठी में डीआईजी निवास एवं कार्यालय, वर्तमान बस स्टैंड में सेकेट्री आवास सहित सभी कार्यालय नौगांव में संचालित होते थे। नगर के पहले भवन जिसमें कमिश्नरी कार्यालय संचालित होता था, उसका निर्माण 1861 में अंग्रेजी सरकार के अफसर मिस्टर डब्ल्यू एस सिलीमेन ने कराया था। इसके अलावा आर्मी कॉलेज रोड पर सेंट पीटर रोमन कैथोलिक चर्च का निर्माण 1869 में , सिटी चर्च 1905,सर्किट हाऊस का निर्माण 1905, नौगांव क्लब, भड़ार पुल, बड़ा पुल, टीबी अस्पताल भवन सहित अनेक इमारतें अंग्रेजी हुकूमत के समय बनी थी, जिसका प्रयोग आज भी नगरवासी बड़े ही अच्छे तरीके से कर रहे हैं।

विंध्य प्रदेश की राजधानी रहा नौगांव

नौगांव। ब्रिटिश शासन की जेल, वर्तमान में पॉलीटैक्निक कॉलेज की कर्मशाला बन गई। ब्रिटिश शासन की चर्च, जहां अंग्रेज शासक करते थे आराधना। 

Saturday 27 January 2018

माँ के दर से कोसों दूर तक नही है पीने का पानी


लोगो के आस्था का केंद्र व माँ के दरवार में पेयजल आपूर्ति को लेकर प्रशासन जानबूझकर बना अनजान*

श्रद्धालुओं को करना पड़ता है पानी को लेकर भारी मुसीबत का सामना

बेलाताल।राजा छत्रसाल की नगरी जैतपुर(बेलाताल) विकास कार्यों से काफी दूर नज़र आ रहा है। नेता अपनी जेबें भर रहे हैं और विकास के नाम पर हो रही लीपापोती।
गैरतलब है कि बेलाताल नगर में मातारानी का वर्षों पुराना मंदिर है,जो छैमाई माता मंदिर नाम से प्रसिद्ध माना जाता है एवं लोग अपनी  आस्था का केन्द्र मानते हैं यह मंदिर पहाड़ों के ऊपर बना हुआ है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि  बेलासागर तालाब समीप पहाड़ पर बने मां के मंदिर से मीलों दूर तक नही है पीने का पानी जो श्रद्धालुओं की आस्था एवं भक्ति को ठेस पहुचता है। यहाँ पर नवरात्रि एवं विशेष त्योहारों में हजारों की तादात में भक्त  मां के दर्शन को आते है,तथा पानी के अभाव में वहाँ के पहाड़ ,तालाब व ठंडी हवा का आनंद लेने के लिए ज्यादा समय तक नही रुक पाते, दार्शनिक स्थल पर पानी की व्यवस्था न हो यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है।

आने वाली दीपावली के दूसरे दिन ग्रामवासियों द्वारा विशाल मोनिया मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें आसपास के गांव एवं दूर दराज से आयीं मोनियाँ की टोलियां भाग लेती है एवं मां के दरवार में नाच गाना करती हैं।
मेला प्रांगण में पूतना दहन का कभी कार्यक्रम लोगों को आकर्षित करने एवं परंपरा के तहत रखा जाता है।

बेलाताल स्टेशन में बड़ी ट्रेनों के ठहराव के लिए अनशन शुरू…


 



बेलाताल रेल स्टेशन पर क्रमिक अनशन शुरू किया गया। बेलाताल रेल स्टेशन पर संपर्क क्रांति, चंबल, उदयपुर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस गाड़ियों के ठहराव की मांग को लेकर क्षेत्र के पचासो गांवों के लोगो द्वारा रेल स्टेशन प्रांगण मे अनिश्चित कालीन क्रमिक अनशन आज से शुरू कर दिया गया। युवाओं की इस पहल मे ल़ोगो का पहले ही दिन से भारी जनसमर्थन देखा गया। ग्रामीण क्षेत्र के सैकड़ो लोग बड़े उत्साह के साथ धरना स्थल पर पहुंच समर्थन देने को जुट रहे हैं। रेल रोको संघर्ष समिति के तत्वावधान मे शुरू हुये इस धरना को अंजाम तक पहुचाने का उपस्थित लोगों ने संकल्प लिया।

A little History of Belatal Mahoba

वीर काव्य के अन्तर्गत रासो ग्रन्थों का प्रमुख स्थान है। आकार की बात इतनी नहीं है जितनी वर्णन की विशदता की है। छोटे से छोटे आकार से लेकर कई कई ""समयों'' अध्यायों में समाप्त होने वाले रासो ग्रन्थ हिन्दी साहित्य में वर्तमान हैं। सबसे भारी भरकम रासो ग्रन्थ, सिने अधिकांश कवियों को रासो लिखने के लिये प्रेरित किया, चन्द वरदाई कृत पृथ्वीराज रासो है। इससे बहुत छोटे पा#्रयः तीन सौ चार छन्दों में समाप्त होने वाले रासो नामधारी वीर काव्य भी हैं, जो किन्हीं सर्गो या अध्यायों में भी नहीं बांटे गये हैं- ये केवल एक क्रमबद्ध विवरण के रुप में ही लिखे गये हैं।
रासों ग्रन्थों की परम्परा में ही ""कटक'' लिखे जाने की शैली ने जन्म पाया। कटक नामधारी तीन महत्वपूर्ण काव्य हमारी शोध् में प्रापत हुये हें। बहुत सम्भव है कि इस ढंग के और भी कुछ कटक लिखे गये हों, परन्तु वे काल के प्रभाव से बच नहीं सके। कटक नाम के ये काव्य नायक या नायिका के चरित का विशद वर्णन नहीं करते, प्रत्युत किसी एक उल्लेखनीय संग्राम का विवरण प्रस्तुत करते हुए नायक के वीरत्व का बखान करते हैं।
ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार सर्वप्रथम हम श्री द्विज किशोर विरचित ""पारीछत को कटक'' की चर्चा करना चाहेंगे। ये पारीछत महाराज बुन्देल केशरी छत्रसाल के वंश में हुए, जैतपुर के महाराजा के रुप में इन्होंने सन् १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम से बहुत पहले विदेशी शासकों से लोहा लेते हुये सराहनीय राष्ट्भक्ति का परिचय दिया। ""पारीछत को कटक"" आकार में बहुत छोटा है। यह ""बेलाताल को साकौ'' के नाम से भी प्रसिद्ध है। स्पष्ट है कि इस काव्य में बेला ताल की लड़ाई का वर्णन है। जैतपुर के महाराज पारीछत के व्यक्तित्व और उनके द्वारा प्रदर्शित वीरता के विषय में निम्नलिखित विवरण पठनीय है-
महाराज छत्रसाल के पुत्र जगतराज जैतपुर की गद्दी पर आसीन हुए थे। जगतराज के मंझले पुत्र पहाड़सिंह की चौथी पीढ़ी के केशरी सिंह के पुत्र महाराज पारीछत जैतपुर को गद्दी के अधिकारी हुए। इन्हीं महाराज पारीछत ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता के विरुद्ध सन् १८५७ से बहुत पहले विन्ध्यप्रदेश में प्रथम बार स्वाधीनता का बिगुल बजाया। महाराज पारीछत की धमनियों में बुन्देल केसरी महाराज छत्रसाल का रक्त वे#्र से प्रवाहित हो उठा, और वे यह सहन न कर सके कि उनके यशस्वी पूर्वज ने अपनी वृद्धावस्था में पेशवा को जो जागीर प्रदान की थी, उसे व्यापारियों की एक टोली उनके मराठा भाइयों से छीनकर बुन्छेलखण्ड पर अपना अधिकार जमावे। महाराज पारीछत ने कई बार और कई वर्ष तक अंग्रेंजों की कम्पनी सरकार को काफी परेशान किया, और उन्होंने झल्लाकर उन्हें लुटेरे की संज्ञा दे डाली।
जान सोर, एजेन्ट ने मध्यप्रदेश में विजयराघव गढ़ राज्य के तत्कालीन नरेश ठाकुर प्रागदास को २० जनवरी, सन् १८३७ ई. को उर्दू में जो पत्र लिखा, उससे विदित होता हे कि महाराज पारीछत १८५७ की क्रान्ति से कम से कम २० वर्ष पूर्व विद्रोह का झण्डा ऊंचा उठा चुके थे। उक्त पत्र के अनुसार ठाकुर प्रागदास ने पारीछत को परास्त करते हुए उन्हें अंग्रेज अधिकारियों को सौंपा, जिसके पुरस्कार स्वरुप उन्हें अंग्रेजों ने तोप और पाँच सौा पथरकला के अतिरिक्त पान के लिए बिल्हारी जागीर और जैतपुर का इलाका प्रदान किया।
ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि महाराज पारीछत चुप नहीं बैठै। उन्होंने फिर भी सिर उठाया, और इस बार कुछ और भी हैरान किया। उर्दू में एक इश्तहार कचहरी एजेन्सी मुल्क बुन्देलखण्ड, मुकाम जबलपुर खाम तारीख २७ जनवरी सन् १८५७ ई. पाया जाता है, जिसमें पारीछत, साविक राजा जैतपुर और उनके हमाराही पहलवान सिंह के भी नाम है।
उर्दू में ही एक रुपकार कचहरी अर्जेन्टी मुल्के बुन्देलखण्ड इजलास कर्नल विलियम हैनरी स्लीमान साहब अर्जेन्ट नवाब गवर्नर जनरल बहादुर बाके २४ दिसम्बर, सन् १८५७ के अनुसार- ""अरसा करीब २ साल तक कम व वैस पारीछत खारिजुल रियासत जैतपुर किया गया। सर व फशाद मचाये रहा और रियाया कम्पनी अंग्रेज बहादुर को पताया किया और बाजजूद ताकीदाद मुकर्रर सिकर्रर निस्वत सब रईसों के कुछ उसका तदारुक किसी रईस ने न किया हालांकि बिल तहकीक मालूम हुआ कि उसने रियासत ओरछा में आकर पनाह पाई''। इस रुपकार के अनुसार पारीछत के भाईयां में से कुंवर मजबूत सिंह और कुंवर जालिम सिंह की योजना से राजा पारीछत स्वयं अपने साथी पहलवानसिंह पर पाँच हजार रुपया इनाम घोषित किया था। राजा पारीछत को दो हजार रुपया मासिक पेंशन देकर सन् १८४२ में कानपुर निर्वासित कर दिया गया। कुछ दिनों बादवे परमधाम को सिधार गये। उनकी वीरता की अकथ कहानियाँ लोकगीतों के माध्यम से आज भी भली प्रकार सुरक्षित हैं। इन्हीं में ""पारीछत कौ कटक'' नामक काव्यमय वर्णन भी उपलब्ध है।
सन् १८५७ की क्रान्ति में लखैरी छतरपुर के दिमान देशपत बुन्देला ने महाराज पारीछत की विधवा महारानी का पक्ष लेकर युद्ध छेड़ दिया और वे कुछ समय तक के लिये जैतपुर लेने में भी सफल हुए। दिमान देशपत की हत्या का बदला लेने के लिए अक्टूबर १९६७ में उनके भतीजे रघुनाथसिंह ने कमर कसी।
""पारीछत कौ कटक'' अधिकतर जनवाणी में सुरक्षित रहा। ऐसा जान पड़ता है कि इसे लिपितबद्ध करने के लिए रियासती जनता परवर्ती ब्रिथ्टिश दबदबे के कारण घबराती रही। लोक रागिनी में पारीछत के गुणगान के कतने ही छन्द क्रमशः लुप्त होते चले गये हों, तो क्या अचरज है। कवि की वर्णन शैली से प्रकट है कि उसने प्रचलित बुन्देली बोली में नायक की वीरता का सशक्त वर्णन किया है। महाराज पारीछत के हाथी का वर्णन करते हुए वह कहता है-
""ज्यों पाठे में झरना झरत नइयां,
त्यों पारीछत कौ हाथी टरत नइया।।
पाठे का अर्थ है एक सपाट बड़ी चट्टान। शुद्ध बुन्देली शब्दावली में ""नइयाँ'' नहीं है की मधुरता लेकर कवि ने जो समता दिखाई है, वह सर्वथा मौलिक है, और महाराज पारीछत के हाथी को किसी बुन्देलखण्उ#ी पाठे जैसी दृढ़ता से सम्पन्न बतलाती है।
चरित नायक महाराज पारीछत की वीरता और आत्म निर्भरता से शत्रु का दंग रह जाना अत्यन्त सरल शब्दावली में निरुपित हुआ हैं।
""जब आन पड़ी सर पै को न भओ संगी।
अर्जन्ट खात जक्का है राजा जौ जंगी।।''
बुन्देली बोली से तनिक भी लगाव रखने वाले हिन्दी भाषी सहज ममें समझ सकेंगे कि पोलिटिकल एजेन्ट का भारतीय करण ""अर्जन्ट'' शब्द से हुआ है। जक्का खाना एक बुन्देली मुहावरा है जिसका बहुत मौजूं उपयुक्त प्रयोग हुआ है- "चकित रह जाना' से कहीं अधिक जोर दंग रह जाने में माना जा सकता है, परन्तु हमारी समझ में जक्का खाना में भय और विस्मय की सम्मिलित मात्रा सविशेष है।
पारीछत नरेश में वंशगत वीरता का निम्न पंक्तियों में सुन्दर चित्रण हुआ है।
""बसत सरसुती कंठ में, जस अपजस कवि कांह।
छत्रसाल के छत्र की पारीछत पै छांह।।''
पारीछत के कटक का निम्नलिखित छन्द वर्णन शैली का भली प्रकार परिचायक है-
""कर कूंच जैतपुर से बगौरा में मेले।
चौगान पकर गये मन्त्र अच्छौ खेले।।
बकसीस भई ज्वानन खाँ पगड़ी सेले।
सब राजा दगा दै गये नृप लड़े अकेले।।
कर कुमुक जैतपुर पै चढ़ आऔ फिरंगी।
हुसयार रहो राजा दुनियाँ है दुरंगी।।
जब आन परी सिर पै कोऊ न भऔ संगी।
अर्जन्ट खात जक्का है राजा जौ जंगी।।
एक कोद अर्जन्ट गऔ, एकवोर जन्डैल।
डांग बगोरा की घनी, भागत मिलै न गैल।।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि ""पारीछत को कटक'' का बुन्देली रचनाओं में महत्वपूर्ण स्थान है। ऐतिहासिक दृष्टि से इस रचना का हिन्दी साहित्य में विशिष्ट महत्व है।

शहर की सुंदरता में चार चांद लगाने वाले बेलाताल को पवित्र तालाब घोषित कर दिया गया है। नगर पालिका ने पीआईसी की बैठक में इस संबंध में प्रस्ताव पास कर जिला प्रशासन को भेजा जिसे शासन स्तर पर भेजने की तैयारी की जा रही है।
दरअसल, तालाब में बढ़ती गंदगी और उसके रख-रखाव में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। बेलाताल शहर का एकमात्र ऐसा तालाब है जिसके बीचों-बीच टापू पर दो मंदिर और उनको आपस में जोडऩे के लिए पुल बनाया गया है। टापू पर बने भगवान राम-जानकी, हनुमान जी एवं मां दुर्गा का मंदिर प्राचीन होने के कारण लोगों की आस्था का केंद्र है। तालाब को साफ-सुथरा रखने की मांग अकसर उठती रही है। ऐसे में तालाब को स्व'छ बनाए रखने का एक मात्र रास्ता नगर पालिका के पास उसे पवित्र घोषित करना था।
ऐसे हुआ पवित्र घोषित : तालाब संरक्षित, गहरीकरण एवं सफाई की मांग को लेकर विभिन्न संगठनों ने प्रदर्शन एवं आंदोलन किए थे। कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह ने नगर पालिका को निर्देशित किया कि शीघ्र ही इसे पवित्र घोषित करने की कार्रवाई करे। पिछले माह 30 जनवरी को पीआईसी की बैठक में सर्वसम्मति से बेलाताल को पवित्र तालाब घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया गया था। इस बीच कलेक्टर ने 11 फरवरी को पत्र भेजकर की गई कार्रवाई तलब की और नगर पालिका ने पारित प्रस्ताव जिला प्रशासन को भेजा। प्रस्ताव पहुंचते ही कलेक्टर ने भी उसे अनुमोदित कर दिया। अब उसे शासन के पास भेजा जा रहा है।
कचरा डाला तो 500 रुपए लगेगा जुर्माना : तालाब पवित्र घोषित होने से उसकी पूरी उपविधि बनेगी। तालाब में किसी भी तरह की गंदगी फैलाने, वहां धूम्रपान करने, पॉलीथिन आदि डालने पर कम से कम 500 रुपए का जुर्माना किया जाएगा। आस्था के नाम पर अब उसमें कुछ भी नहीं फेंका जा सकेगा। इसके अलावा तालाब को चारों ओर से रेलिंग लगाकर सुरक्षित किया जाएगा तालाब पवित्र होने से उसकी सफाई के लिए अलग से बजट का प्रावधान भी किया जाएगा।
॥सुरक्षित रखने में जनता का भी दायित्व : बेलाताल को पवित्र तालाब घोषित कर दिया गया है। उसके लिए नगर पालिका और जिला प्रशासन अपने स्तर पर तो कार्रवाई और रखरखाव करेगी ही शहर के लोगों का भी दायित्व है कि उसमें गंदगी न डालें। तालाबों को स्व'छ बनाए रखने की अ'छी पहल है।

जिला महोबा, क्षेत्र जैतपुर, क़स्बा बेलाताल गरीबी और बेरोजगारी के कारन आदमी दिल्ली, पंजाब, और आगरा जैसे शहरन में पलायन करबे जात। लेकिन उन्हें जाबे आबे में भी कितनी परेशानियन को सामनो करने परत। एसे ही महोबा जिला के जैतपुर क्षेत्र के कम से कम तिरसठ ग्राम पंचायत के आदमी हर रोज पलायन करत। या फिर अपने घरे वापिस आ जात। लेकिन बेलाताल स्टेशन पे कोनऊ ट्रेन नइ रुकत।
उन्हें ट्रेन लेबे के लाने झांसी जाने परत और केऊ आदमियन की तो ट्रेने छूट भी जाती। बेलाताल स्टेशन पे ट्रेन रुके जाबे के लाने इते के आदमियन ने 16 नवम्बर से 20 नवम्बर तक क्रमिक अनशन भी करो।
लेकिन महोबा जिला के सांसद पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल ने आदमियन को आश्वाशन दओ के हम जो बात रेलवे मंत्री से करे और उनको अनशन ख़तम करवाओ।
नरेन्द्र कुमार ने बताई के आदमियन को दिक्कत होत आबे जाबे में जेसे व्यापारी हे किसान हे मजदूर हे सब को आने जाने परत। इते से कुलपहाड़ दस बारह किलो मीटर हे। और हमाय ते से सब सुपरफास्ट ट्रेने निकरती। अगर स्टेशन पे रुकन लगे तो बोहतई फायदा होन लगे हम सब को। जाकी दिनन से बात चल रही ती। लेकिन जब कछु नइ भओ तब हम ओरन को अनशन करने परो।
आदित्य नारायण ने बताई के इते से जब ट्रेने हे तो हमे सुविधा मिलबे। अगर हम नाजायज मांग करबे तो हमाई मांग न पूरी करो कोनऊ जरुरत नइया। रेल मंत्री ने जो नियम बनाय बे सब हे।
इते जनसंख्या भी हे और इते के छात्र भी पढबे जात। अगर कोऊ बीमार हो जांत तो हम पहले कुलपहाड़ जात फिर उते से ट्रेन पकर के जात। संपर्कक्रांति हे तो बाकी सौ प्रतिशत आवश्यकता हे दिल्ली, अगरा, मथुरा, सब वोई से जात।