Thursday 26 July 2018

जटाशंकर धाम छतरपुर Near of Belatal Jaitpur


जटाशंकर मंदिर अति प्राचीन है| यहाँ के स्वयंभू शिवलिंग का अनुमान लगाना अति कठिन है| इन जटाशंकर भगवन से अनेक सत्य प्रमाणिक घटनाएँ जुडी हुयी हैं | जिसमे प्रमुख घटना करीब २०० वर्ष पुरानी है| टीकमगड़ जिले खरगापुर तहसील का एक गांव है देवदा, जहाँ एक ब्राम्हण दंपत्ति निवास करते थे| उनके चार लड़के ओर एक लड़की थी| अत्यधिक सम्पन्नता के कारण ब्राम्हण दंपत्ति का जीवन सुखमय था| कुछ समय बाद ब्राम्हण का निधन हो गया ओर उस समय की परम्परा के अनुसार ब्राम्हणी ने सती होने का निश्चय कर लिया |
सती होने के पूर्व सती ने चार हंडों में भरी स्वर्ण मुद्राएँ अपने चार बेटों ओर बेटी को बाँट दीं| किन्तु लड़की के मौके पर उपस्थित होने के कारण उसका हिस्सा बड़ी बहू को सौंप दिया गया| बड़ी बहू ने लालचवश लड़की के हिस्से में से तीन मुट्ठी मुद्राएँ निकलवा लीं| घर की व्यवस्था कर ब्राम्हणी '' चिर समाधी '' लेने पति की चिता की ओर चल दी | सती के अंतिम दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए सभी परिवारजन एकत्रित हुए|
दिव्यद्रष्टा ब्राम्हणी ने सभी को आशीर्वाद दिया और बड़ी बहू को श्राप दे दिया की '' जा तेरा खानदान नष्ट हो जाये'' सती का श्राप मिथ्या नहीं गया| घर में अचानक महामारी फैलने लगी | पशु, पक्षी, बच्चे और और कुटुम्बी अचानक काल के गाल मे समाने लगे | लगातार मौतें देखकर बड़ी बहू के परिवारजन घबराने उठे तथा गांव बालों की सलाह पर उन्होंने देवदा छोड़ दिया | फिर अपनी कुल देवी कालिका माता के स्थान ग्राम बड़ी देरी आकर, अपने परिवार रक्षा की मनौती मांगकर वहीं बस गए| माँ काली की अनुकम्पा से श्राप कम हुआ और महामारी रूक गयी| भावी संतानें अपंग होने लगी| छिंगे महराज भी अपंग पैदा हुए, उनके हाथ और पैर की छः छः अंगुलियाँ थी | इसी परिवार में रघुनाथ और छिंगे नामक दो बालक हुए, रघुनाथ बड़े होकर गृहस्थ हो गये | जिनसे पाठक वंश का विस्तार हुआ जिनकी पांचवी पीड़ी जटाशंकर भगवान् की सेवा कर रही है | रघुनाथ पाठक के भाई छिंगे महराज बचपन से मस्तमौला, घुमक्कड़ और अविवाहित रहे| वे दमोह नगर के आसपास के जंगलों और पहाड़ियों पर घूमते रहते थे| एक दिन उन्हें इसी जटाशंकर स्थित गोलाकार पहाड़ी के बीच एक गुफा मिली|
उस गुफा में एक धूनी थी, जो दिन रात गरम रहती थी परन्तु वहां कोइ आता जाता नहीं था| अतः छिंगे महराज ने इसी एकांत को अपना विश्राम स्थल बनाया| जंगल के चरवाहे उनके भोजन की व्यवस्था करने लगे| एक दिन छिंगे महराज ने इस गरम धूनी में हाथ डाला तो उन्हें दो तीन रजत मुद्राएँ प्राप्त हुईं| इस तरह से उन्हें प्रतिदिन रजत मुद्राएँ मिलने लगीं |

धीरे धीरे समय गुजरता गया, एक दिन छिंगे महराज पर भगवान् की अनुकम्पा हुई और उन्हें स्वप्न देकर कहा- '' मुझे धूनी से बाहर निकालो में हजारों वर्षों से इस घूनी के नीचे आग में जल रहा हूँ|'' पहिले तो महराज को इस पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन स्वप्न के कारण उनकी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी | बाद मे उनने यह बात चरवाहे को भी बताई और उनकी मदद से धूनी की खुदाई भी की गयी | तब वहाँ पर 'स्वयंभू शिवलिंग के' जरारू सहित दर्शन हुए | वे उस शिवलिंग की निरंतर पूजा अर्चना करने लगे और उस शिवलिंग के दाह को शांत करने के लिए निरंतर चन्दन आदि का लेप करने लगे | तब भगवान शिव की कृपा से बड़ी बहू का वंश श्राप से मुक्त हुआ और वे भोलेनाथ की सेवा करते करते ब्रम्हलीन हो गये | जटाशंकर धाम में भगवान शंकर देवासुर संग्राम में जरा नामक देत्य को मारने के पश्चात आकर बसे थे7 शंकर जी का जो संताप था उसकी तृप्ति के लिए विष्णु भगवान ने भगवान को विद्यालय घाटी के इस धारा से स्नान करेने को कहां। तब शंकर भगवान यहां आकार विराजे और यह जटाशंकर एक पावन तीर्थ बना। यहां भगवान शंकर मूर्ति रूप में विराजमान है। यहां पर जो वामन गंगा का जल है वह तीन कुंड में दिखाई देता है। वह जल चर्म रोग की पेंटेट दवा का कार्य करती है।

इस कुंड के जल से प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करते हैं एवं जल को भगवान पर चढ़ाते है, लेकिन फिर भी जल की स्थिति यथावत रहती है। प्रत्येक अमावस्या के दिन यहां देश के अनेक स्थानों से लाखों की संख्या में श्रद्धालुगण आकार पावनभूमि के दर्शन करते एवं उनके मनोरथ पूर्ण करते है। यहां पर अक्षुधारा का एक स्थान है जहां के जल से नेत्र ज्योति बढ़ती है जो प्रत्येक माह की तिथि (14) को ही धारा के रूप में निकलता है। जटाशंकर में पहाड़ी में भीमबैठिका (भोपाल) की तरह शैलचित्र है। जब छत्रसाल महाराज को पन्ना एवं बिजावर स्टेट में से एक नई स्टेट बनानी थी। जब छतरपुर स्टेट बनाई गई तब महाराज छत्रसाल द्वारा जटाशंकर की प्रतिमा के बगल में शिवलिंग की स्थापना की गई थी। उस समय बगल के कुंड में गौमुख का भी निर्माण साथ में किया गया था। सन् 1966 में डकैत मूरत सिंह ने यहां पर एक विशाल यज्ञ किया एवं पहाड़ी पर राधा-कृष्ण मंदिर का निर्माण एवं स्थापना करवाई। यदि आप जटाशंकर जाते है तो जटाशंकर से 2 किमी दूर मौनासैया नाम का स्थान है जहां पर एक जलप्रपात है एवं एक विशाल गुफा है जिसमें पंचमुखी हनुमान जी विराजमान है। वर्तमान समय में यहां पर अनेक धर्मशालाएं है। दिनांक 7.4.07 को .प्र. शासन के जनदर्शन कार्यक्रम किया गया जिसमें प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान जी पधारे, उन्होंने जटाशंकर के विकास के लिए शासन से पर्यटन विभाग से जटाशंकर को पर्यटन स्थल के रूप में घोषित कराया एवं यात्रियों की सुविधा के लिए 30 लाख की लागत से 30 बेड का एक रेन बसेरा एवं 20 सीटर जनसुविधा केंद्र एवं बस स्टैंड पर विशाल प्रतीक्षालय है। चमत्कार: समय-समय पर आरती के समय नागदेवता दर्शन देते है एवं कभी-कभी कुंडों में पानी के स्थान पर दूध की धारा बहती दिखती है। मंदिर की पूजा व्यवस्था के लिए सन् 1965 में एक ट्रस्ट का गठन किया गया जिसके पहले अध्यक्ष श्री विष्णुप्रसाद धतरा थे। वर्तमान में 5वें अध्यक्ष कुंजबिहारी पांडे जी है।