Saturday, 27 January 2018

माँ के दर से कोसों दूर तक नही है पीने का पानी


लोगो के आस्था का केंद्र व माँ के दरवार में पेयजल आपूर्ति को लेकर प्रशासन जानबूझकर बना अनजान*

श्रद्धालुओं को करना पड़ता है पानी को लेकर भारी मुसीबत का सामना

बेलाताल।राजा छत्रसाल की नगरी जैतपुर(बेलाताल) विकास कार्यों से काफी दूर नज़र आ रहा है। नेता अपनी जेबें भर रहे हैं और विकास के नाम पर हो रही लीपापोती।
गैरतलब है कि बेलाताल नगर में मातारानी का वर्षों पुराना मंदिर है,जो छैमाई माता मंदिर नाम से प्रसिद्ध माना जाता है एवं लोग अपनी  आस्था का केन्द्र मानते हैं यह मंदिर पहाड़ों के ऊपर बना हुआ है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि  बेलासागर तालाब समीप पहाड़ पर बने मां के मंदिर से मीलों दूर तक नही है पीने का पानी जो श्रद्धालुओं की आस्था एवं भक्ति को ठेस पहुचता है। यहाँ पर नवरात्रि एवं विशेष त्योहारों में हजारों की तादात में भक्त  मां के दर्शन को आते है,तथा पानी के अभाव में वहाँ के पहाड़ ,तालाब व ठंडी हवा का आनंद लेने के लिए ज्यादा समय तक नही रुक पाते, दार्शनिक स्थल पर पानी की व्यवस्था न हो यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है।

आने वाली दीपावली के दूसरे दिन ग्रामवासियों द्वारा विशाल मोनिया मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें आसपास के गांव एवं दूर दराज से आयीं मोनियाँ की टोलियां भाग लेती है एवं मां के दरवार में नाच गाना करती हैं।
मेला प्रांगण में पूतना दहन का कभी कार्यक्रम लोगों को आकर्षित करने एवं परंपरा के तहत रखा जाता है।

बेलाताल स्टेशन में बड़ी ट्रेनों के ठहराव के लिए अनशन शुरू…


 



बेलाताल रेल स्टेशन पर क्रमिक अनशन शुरू किया गया। बेलाताल रेल स्टेशन पर संपर्क क्रांति, चंबल, उदयपुर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस गाड़ियों के ठहराव की मांग को लेकर क्षेत्र के पचासो गांवों के लोगो द्वारा रेल स्टेशन प्रांगण मे अनिश्चित कालीन क्रमिक अनशन आज से शुरू कर दिया गया। युवाओं की इस पहल मे ल़ोगो का पहले ही दिन से भारी जनसमर्थन देखा गया। ग्रामीण क्षेत्र के सैकड़ो लोग बड़े उत्साह के साथ धरना स्थल पर पहुंच समर्थन देने को जुट रहे हैं। रेल रोको संघर्ष समिति के तत्वावधान मे शुरू हुये इस धरना को अंजाम तक पहुचाने का उपस्थित लोगों ने संकल्प लिया।

A little History of Belatal Mahoba

वीर काव्य के अन्तर्गत रासो ग्रन्थों का प्रमुख स्थान है। आकार की बात इतनी नहीं है जितनी वर्णन की विशदता की है। छोटे से छोटे आकार से लेकर कई कई ""समयों'' अध्यायों में समाप्त होने वाले रासो ग्रन्थ हिन्दी साहित्य में वर्तमान हैं। सबसे भारी भरकम रासो ग्रन्थ, सिने अधिकांश कवियों को रासो लिखने के लिये प्रेरित किया, चन्द वरदाई कृत पृथ्वीराज रासो है। इससे बहुत छोटे पा#्रयः तीन सौ चार छन्दों में समाप्त होने वाले रासो नामधारी वीर काव्य भी हैं, जो किन्हीं सर्गो या अध्यायों में भी नहीं बांटे गये हैं- ये केवल एक क्रमबद्ध विवरण के रुप में ही लिखे गये हैं।
रासों ग्रन्थों की परम्परा में ही ""कटक'' लिखे जाने की शैली ने जन्म पाया। कटक नामधारी तीन महत्वपूर्ण काव्य हमारी शोध् में प्रापत हुये हें। बहुत सम्भव है कि इस ढंग के और भी कुछ कटक लिखे गये हों, परन्तु वे काल के प्रभाव से बच नहीं सके। कटक नाम के ये काव्य नायक या नायिका के चरित का विशद वर्णन नहीं करते, प्रत्युत किसी एक उल्लेखनीय संग्राम का विवरण प्रस्तुत करते हुए नायक के वीरत्व का बखान करते हैं।
ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार सर्वप्रथम हम श्री द्विज किशोर विरचित ""पारीछत को कटक'' की चर्चा करना चाहेंगे। ये पारीछत महाराज बुन्देल केशरी छत्रसाल के वंश में हुए, जैतपुर के महाराजा के रुप में इन्होंने सन् १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम से बहुत पहले विदेशी शासकों से लोहा लेते हुये सराहनीय राष्ट्भक्ति का परिचय दिया। ""पारीछत को कटक"" आकार में बहुत छोटा है। यह ""बेलाताल को साकौ'' के नाम से भी प्रसिद्ध है। स्पष्ट है कि इस काव्य में बेला ताल की लड़ाई का वर्णन है। जैतपुर के महाराज पारीछत के व्यक्तित्व और उनके द्वारा प्रदर्शित वीरता के विषय में निम्नलिखित विवरण पठनीय है-
महाराज छत्रसाल के पुत्र जगतराज जैतपुर की गद्दी पर आसीन हुए थे। जगतराज के मंझले पुत्र पहाड़सिंह की चौथी पीढ़ी के केशरी सिंह के पुत्र महाराज पारीछत जैतपुर को गद्दी के अधिकारी हुए। इन्हीं महाराज पारीछत ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता के विरुद्ध सन् १८५७ से बहुत पहले विन्ध्यप्रदेश में प्रथम बार स्वाधीनता का बिगुल बजाया। महाराज पारीछत की धमनियों में बुन्देल केसरी महाराज छत्रसाल का रक्त वे#्र से प्रवाहित हो उठा, और वे यह सहन न कर सके कि उनके यशस्वी पूर्वज ने अपनी वृद्धावस्था में पेशवा को जो जागीर प्रदान की थी, उसे व्यापारियों की एक टोली उनके मराठा भाइयों से छीनकर बुन्छेलखण्ड पर अपना अधिकार जमावे। महाराज पारीछत ने कई बार और कई वर्ष तक अंग्रेंजों की कम्पनी सरकार को काफी परेशान किया, और उन्होंने झल्लाकर उन्हें लुटेरे की संज्ञा दे डाली।
जान सोर, एजेन्ट ने मध्यप्रदेश में विजयराघव गढ़ राज्य के तत्कालीन नरेश ठाकुर प्रागदास को २० जनवरी, सन् १८३७ ई. को उर्दू में जो पत्र लिखा, उससे विदित होता हे कि महाराज पारीछत १८५७ की क्रान्ति से कम से कम २० वर्ष पूर्व विद्रोह का झण्डा ऊंचा उठा चुके थे। उक्त पत्र के अनुसार ठाकुर प्रागदास ने पारीछत को परास्त करते हुए उन्हें अंग्रेज अधिकारियों को सौंपा, जिसके पुरस्कार स्वरुप उन्हें अंग्रेजों ने तोप और पाँच सौा पथरकला के अतिरिक्त पान के लिए बिल्हारी जागीर और जैतपुर का इलाका प्रदान किया।
ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि महाराज पारीछत चुप नहीं बैठै। उन्होंने फिर भी सिर उठाया, और इस बार कुछ और भी हैरान किया। उर्दू में एक इश्तहार कचहरी एजेन्सी मुल्क बुन्देलखण्ड, मुकाम जबलपुर खाम तारीख २७ जनवरी सन् १८५७ ई. पाया जाता है, जिसमें पारीछत, साविक राजा जैतपुर और उनके हमाराही पहलवान सिंह के भी नाम है।
उर्दू में ही एक रुपकार कचहरी अर्जेन्टी मुल्के बुन्देलखण्ड इजलास कर्नल विलियम हैनरी स्लीमान साहब अर्जेन्ट नवाब गवर्नर जनरल बहादुर बाके २४ दिसम्बर, सन् १८५७ के अनुसार- ""अरसा करीब २ साल तक कम व वैस पारीछत खारिजुल रियासत जैतपुर किया गया। सर व फशाद मचाये रहा और रियाया कम्पनी अंग्रेज बहादुर को पताया किया और बाजजूद ताकीदाद मुकर्रर सिकर्रर निस्वत सब रईसों के कुछ उसका तदारुक किसी रईस ने न किया हालांकि बिल तहकीक मालूम हुआ कि उसने रियासत ओरछा में आकर पनाह पाई''। इस रुपकार के अनुसार पारीछत के भाईयां में से कुंवर मजबूत सिंह और कुंवर जालिम सिंह की योजना से राजा पारीछत स्वयं अपने साथी पहलवानसिंह पर पाँच हजार रुपया इनाम घोषित किया था। राजा पारीछत को दो हजार रुपया मासिक पेंशन देकर सन् १८४२ में कानपुर निर्वासित कर दिया गया। कुछ दिनों बादवे परमधाम को सिधार गये। उनकी वीरता की अकथ कहानियाँ लोकगीतों के माध्यम से आज भी भली प्रकार सुरक्षित हैं। इन्हीं में ""पारीछत कौ कटक'' नामक काव्यमय वर्णन भी उपलब्ध है।
सन् १८५७ की क्रान्ति में लखैरी छतरपुर के दिमान देशपत बुन्देला ने महाराज पारीछत की विधवा महारानी का पक्ष लेकर युद्ध छेड़ दिया और वे कुछ समय तक के लिये जैतपुर लेने में भी सफल हुए। दिमान देशपत की हत्या का बदला लेने के लिए अक्टूबर १९६७ में उनके भतीजे रघुनाथसिंह ने कमर कसी।
""पारीछत कौ कटक'' अधिकतर जनवाणी में सुरक्षित रहा। ऐसा जान पड़ता है कि इसे लिपितबद्ध करने के लिए रियासती जनता परवर्ती ब्रिथ्टिश दबदबे के कारण घबराती रही। लोक रागिनी में पारीछत के गुणगान के कतने ही छन्द क्रमशः लुप्त होते चले गये हों, तो क्या अचरज है। कवि की वर्णन शैली से प्रकट है कि उसने प्रचलित बुन्देली बोली में नायक की वीरता का सशक्त वर्णन किया है। महाराज पारीछत के हाथी का वर्णन करते हुए वह कहता है-
""ज्यों पाठे में झरना झरत नइयां,
त्यों पारीछत कौ हाथी टरत नइया।।
पाठे का अर्थ है एक सपाट बड़ी चट्टान। शुद्ध बुन्देली शब्दावली में ""नइयाँ'' नहीं है की मधुरता लेकर कवि ने जो समता दिखाई है, वह सर्वथा मौलिक है, और महाराज पारीछत के हाथी को किसी बुन्देलखण्उ#ी पाठे जैसी दृढ़ता से सम्पन्न बतलाती है।
चरित नायक महाराज पारीछत की वीरता और आत्म निर्भरता से शत्रु का दंग रह जाना अत्यन्त सरल शब्दावली में निरुपित हुआ हैं।
""जब आन पड़ी सर पै को न भओ संगी।
अर्जन्ट खात जक्का है राजा जौ जंगी।।''
बुन्देली बोली से तनिक भी लगाव रखने वाले हिन्दी भाषी सहज ममें समझ सकेंगे कि पोलिटिकल एजेन्ट का भारतीय करण ""अर्जन्ट'' शब्द से हुआ है। जक्का खाना एक बुन्देली मुहावरा है जिसका बहुत मौजूं उपयुक्त प्रयोग हुआ है- "चकित रह जाना' से कहीं अधिक जोर दंग रह जाने में माना जा सकता है, परन्तु हमारी समझ में जक्का खाना में भय और विस्मय की सम्मिलित मात्रा सविशेष है।
पारीछत नरेश में वंशगत वीरता का निम्न पंक्तियों में सुन्दर चित्रण हुआ है।
""बसत सरसुती कंठ में, जस अपजस कवि कांह।
छत्रसाल के छत्र की पारीछत पै छांह।।''
पारीछत के कटक का निम्नलिखित छन्द वर्णन शैली का भली प्रकार परिचायक है-
""कर कूंच जैतपुर से बगौरा में मेले।
चौगान पकर गये मन्त्र अच्छौ खेले।।
बकसीस भई ज्वानन खाँ पगड़ी सेले।
सब राजा दगा दै गये नृप लड़े अकेले।।
कर कुमुक जैतपुर पै चढ़ आऔ फिरंगी।
हुसयार रहो राजा दुनियाँ है दुरंगी।।
जब आन परी सिर पै कोऊ न भऔ संगी।
अर्जन्ट खात जक्का है राजा जौ जंगी।।
एक कोद अर्जन्ट गऔ, एकवोर जन्डैल।
डांग बगोरा की घनी, भागत मिलै न गैल।।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि ""पारीछत को कटक'' का बुन्देली रचनाओं में महत्वपूर्ण स्थान है। ऐतिहासिक दृष्टि से इस रचना का हिन्दी साहित्य में विशिष्ट महत्व है।

शहर की सुंदरता में चार चांद लगाने वाले बेलाताल को पवित्र तालाब घोषित कर दिया गया है। नगर पालिका ने पीआईसी की बैठक में इस संबंध में प्रस्ताव पास कर जिला प्रशासन को भेजा जिसे शासन स्तर पर भेजने की तैयारी की जा रही है।
दरअसल, तालाब में बढ़ती गंदगी और उसके रख-रखाव में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। बेलाताल शहर का एकमात्र ऐसा तालाब है जिसके बीचों-बीच टापू पर दो मंदिर और उनको आपस में जोडऩे के लिए पुल बनाया गया है। टापू पर बने भगवान राम-जानकी, हनुमान जी एवं मां दुर्गा का मंदिर प्राचीन होने के कारण लोगों की आस्था का केंद्र है। तालाब को साफ-सुथरा रखने की मांग अकसर उठती रही है। ऐसे में तालाब को स्व'छ बनाए रखने का एक मात्र रास्ता नगर पालिका के पास उसे पवित्र घोषित करना था।
ऐसे हुआ पवित्र घोषित : तालाब संरक्षित, गहरीकरण एवं सफाई की मांग को लेकर विभिन्न संगठनों ने प्रदर्शन एवं आंदोलन किए थे। कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह ने नगर पालिका को निर्देशित किया कि शीघ्र ही इसे पवित्र घोषित करने की कार्रवाई करे। पिछले माह 30 जनवरी को पीआईसी की बैठक में सर्वसम्मति से बेलाताल को पवित्र तालाब घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया गया था। इस बीच कलेक्टर ने 11 फरवरी को पत्र भेजकर की गई कार्रवाई तलब की और नगर पालिका ने पारित प्रस्ताव जिला प्रशासन को भेजा। प्रस्ताव पहुंचते ही कलेक्टर ने भी उसे अनुमोदित कर दिया। अब उसे शासन के पास भेजा जा रहा है।
कचरा डाला तो 500 रुपए लगेगा जुर्माना : तालाब पवित्र घोषित होने से उसकी पूरी उपविधि बनेगी। तालाब में किसी भी तरह की गंदगी फैलाने, वहां धूम्रपान करने, पॉलीथिन आदि डालने पर कम से कम 500 रुपए का जुर्माना किया जाएगा। आस्था के नाम पर अब उसमें कुछ भी नहीं फेंका जा सकेगा। इसके अलावा तालाब को चारों ओर से रेलिंग लगाकर सुरक्षित किया जाएगा तालाब पवित्र होने से उसकी सफाई के लिए अलग से बजट का प्रावधान भी किया जाएगा।
॥सुरक्षित रखने में जनता का भी दायित्व : बेलाताल को पवित्र तालाब घोषित कर दिया गया है। उसके लिए नगर पालिका और जिला प्रशासन अपने स्तर पर तो कार्रवाई और रखरखाव करेगी ही शहर के लोगों का भी दायित्व है कि उसमें गंदगी न डालें। तालाबों को स्व'छ बनाए रखने की अ'छी पहल है।

जिला महोबा, क्षेत्र जैतपुर, क़स्बा बेलाताल गरीबी और बेरोजगारी के कारन आदमी दिल्ली, पंजाब, और आगरा जैसे शहरन में पलायन करबे जात। लेकिन उन्हें जाबे आबे में भी कितनी परेशानियन को सामनो करने परत। एसे ही महोबा जिला के जैतपुर क्षेत्र के कम से कम तिरसठ ग्राम पंचायत के आदमी हर रोज पलायन करत। या फिर अपने घरे वापिस आ जात। लेकिन बेलाताल स्टेशन पे कोनऊ ट्रेन नइ रुकत।
उन्हें ट्रेन लेबे के लाने झांसी जाने परत और केऊ आदमियन की तो ट्रेने छूट भी जाती। बेलाताल स्टेशन पे ट्रेन रुके जाबे के लाने इते के आदमियन ने 16 नवम्बर से 20 नवम्बर तक क्रमिक अनशन भी करो।
लेकिन महोबा जिला के सांसद पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल ने आदमियन को आश्वाशन दओ के हम जो बात रेलवे मंत्री से करे और उनको अनशन ख़तम करवाओ।
नरेन्द्र कुमार ने बताई के आदमियन को दिक्कत होत आबे जाबे में जेसे व्यापारी हे किसान हे मजदूर हे सब को आने जाने परत। इते से कुलपहाड़ दस बारह किलो मीटर हे। और हमाय ते से सब सुपरफास्ट ट्रेने निकरती। अगर स्टेशन पे रुकन लगे तो बोहतई फायदा होन लगे हम सब को। जाकी दिनन से बात चल रही ती। लेकिन जब कछु नइ भओ तब हम ओरन को अनशन करने परो।
आदित्य नारायण ने बताई के इते से जब ट्रेने हे तो हमे सुविधा मिलबे। अगर हम नाजायज मांग करबे तो हमाई मांग न पूरी करो कोनऊ जरुरत नइया। रेल मंत्री ने जो नियम बनाय बे सब हे।
इते जनसंख्या भी हे और इते के छात्र भी पढबे जात। अगर कोऊ बीमार हो जांत तो हम पहले कुलपहाड़ जात फिर उते से ट्रेन पकर के जात। संपर्कक्रांति हे तो बाकी सौ प्रतिशत आवश्यकता हे दिल्ली, अगरा, मथुरा, सब वोई से जात।