Thursday, 26 July 2018

जटाशंकर धाम छतरपुर Near of Belatal Jaitpur


जटाशंकर मंदिर अति प्राचीन है| यहाँ के स्वयंभू शिवलिंग का अनुमान लगाना अति कठिन है| इन जटाशंकर भगवन से अनेक सत्य प्रमाणिक घटनाएँ जुडी हुयी हैं | जिसमे प्रमुख घटना करीब २०० वर्ष पुरानी है| टीकमगड़ जिले खरगापुर तहसील का एक गांव है देवदा, जहाँ एक ब्राम्हण दंपत्ति निवास करते थे| उनके चार लड़के ओर एक लड़की थी| अत्यधिक सम्पन्नता के कारण ब्राम्हण दंपत्ति का जीवन सुखमय था| कुछ समय बाद ब्राम्हण का निधन हो गया ओर उस समय की परम्परा के अनुसार ब्राम्हणी ने सती होने का निश्चय कर लिया |
सती होने के पूर्व सती ने चार हंडों में भरी स्वर्ण मुद्राएँ अपने चार बेटों ओर बेटी को बाँट दीं| किन्तु लड़की के मौके पर उपस्थित होने के कारण उसका हिस्सा बड़ी बहू को सौंप दिया गया| बड़ी बहू ने लालचवश लड़की के हिस्से में से तीन मुट्ठी मुद्राएँ निकलवा लीं| घर की व्यवस्था कर ब्राम्हणी '' चिर समाधी '' लेने पति की चिता की ओर चल दी | सती के अंतिम दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए सभी परिवारजन एकत्रित हुए|
दिव्यद्रष्टा ब्राम्हणी ने सभी को आशीर्वाद दिया और बड़ी बहू को श्राप दे दिया की '' जा तेरा खानदान नष्ट हो जाये'' सती का श्राप मिथ्या नहीं गया| घर में अचानक महामारी फैलने लगी | पशु, पक्षी, बच्चे और और कुटुम्बी अचानक काल के गाल मे समाने लगे | लगातार मौतें देखकर बड़ी बहू के परिवारजन घबराने उठे तथा गांव बालों की सलाह पर उन्होंने देवदा छोड़ दिया | फिर अपनी कुल देवी कालिका माता के स्थान ग्राम बड़ी देरी आकर, अपने परिवार रक्षा की मनौती मांगकर वहीं बस गए| माँ काली की अनुकम्पा से श्राप कम हुआ और महामारी रूक गयी| भावी संतानें अपंग होने लगी| छिंगे महराज भी अपंग पैदा हुए, उनके हाथ और पैर की छः छः अंगुलियाँ थी | इसी परिवार में रघुनाथ और छिंगे नामक दो बालक हुए, रघुनाथ बड़े होकर गृहस्थ हो गये | जिनसे पाठक वंश का विस्तार हुआ जिनकी पांचवी पीड़ी जटाशंकर भगवान् की सेवा कर रही है | रघुनाथ पाठक के भाई छिंगे महराज बचपन से मस्तमौला, घुमक्कड़ और अविवाहित रहे| वे दमोह नगर के आसपास के जंगलों और पहाड़ियों पर घूमते रहते थे| एक दिन उन्हें इसी जटाशंकर स्थित गोलाकार पहाड़ी के बीच एक गुफा मिली|
उस गुफा में एक धूनी थी, जो दिन रात गरम रहती थी परन्तु वहां कोइ आता जाता नहीं था| अतः छिंगे महराज ने इसी एकांत को अपना विश्राम स्थल बनाया| जंगल के चरवाहे उनके भोजन की व्यवस्था करने लगे| एक दिन छिंगे महराज ने इस गरम धूनी में हाथ डाला तो उन्हें दो तीन रजत मुद्राएँ प्राप्त हुईं| इस तरह से उन्हें प्रतिदिन रजत मुद्राएँ मिलने लगीं |

धीरे धीरे समय गुजरता गया, एक दिन छिंगे महराज पर भगवान् की अनुकम्पा हुई और उन्हें स्वप्न देकर कहा- '' मुझे धूनी से बाहर निकालो में हजारों वर्षों से इस घूनी के नीचे आग में जल रहा हूँ|'' पहिले तो महराज को इस पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन स्वप्न के कारण उनकी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी | बाद मे उनने यह बात चरवाहे को भी बताई और उनकी मदद से धूनी की खुदाई भी की गयी | तब वहाँ पर 'स्वयंभू शिवलिंग के' जरारू सहित दर्शन हुए | वे उस शिवलिंग की निरंतर पूजा अर्चना करने लगे और उस शिवलिंग के दाह को शांत करने के लिए निरंतर चन्दन आदि का लेप करने लगे | तब भगवान शिव की कृपा से बड़ी बहू का वंश श्राप से मुक्त हुआ और वे भोलेनाथ की सेवा करते करते ब्रम्हलीन हो गये | जटाशंकर धाम में भगवान शंकर देवासुर संग्राम में जरा नामक देत्य को मारने के पश्चात आकर बसे थे7 शंकर जी का जो संताप था उसकी तृप्ति के लिए विष्णु भगवान ने भगवान को विद्यालय घाटी के इस धारा से स्नान करेने को कहां। तब शंकर भगवान यहां आकार विराजे और यह जटाशंकर एक पावन तीर्थ बना। यहां भगवान शंकर मूर्ति रूप में विराजमान है। यहां पर जो वामन गंगा का जल है वह तीन कुंड में दिखाई देता है। वह जल चर्म रोग की पेंटेट दवा का कार्य करती है।

इस कुंड के जल से प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करते हैं एवं जल को भगवान पर चढ़ाते है, लेकिन फिर भी जल की स्थिति यथावत रहती है। प्रत्येक अमावस्या के दिन यहां देश के अनेक स्थानों से लाखों की संख्या में श्रद्धालुगण आकार पावनभूमि के दर्शन करते एवं उनके मनोरथ पूर्ण करते है। यहां पर अक्षुधारा का एक स्थान है जहां के जल से नेत्र ज्योति बढ़ती है जो प्रत्येक माह की तिथि (14) को ही धारा के रूप में निकलता है। जटाशंकर में पहाड़ी में भीमबैठिका (भोपाल) की तरह शैलचित्र है। जब छत्रसाल महाराज को पन्ना एवं बिजावर स्टेट में से एक नई स्टेट बनानी थी। जब छतरपुर स्टेट बनाई गई तब महाराज छत्रसाल द्वारा जटाशंकर की प्रतिमा के बगल में शिवलिंग की स्थापना की गई थी। उस समय बगल के कुंड में गौमुख का भी निर्माण साथ में किया गया था। सन् 1966 में डकैत मूरत सिंह ने यहां पर एक विशाल यज्ञ किया एवं पहाड़ी पर राधा-कृष्ण मंदिर का निर्माण एवं स्थापना करवाई। यदि आप जटाशंकर जाते है तो जटाशंकर से 2 किमी दूर मौनासैया नाम का स्थान है जहां पर एक जलप्रपात है एवं एक विशाल गुफा है जिसमें पंचमुखी हनुमान जी विराजमान है। वर्तमान समय में यहां पर अनेक धर्मशालाएं है। दिनांक 7.4.07 को .प्र. शासन के जनदर्शन कार्यक्रम किया गया जिसमें प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान जी पधारे, उन्होंने जटाशंकर के विकास के लिए शासन से पर्यटन विभाग से जटाशंकर को पर्यटन स्थल के रूप में घोषित कराया एवं यात्रियों की सुविधा के लिए 30 लाख की लागत से 30 बेड का एक रेन बसेरा एवं 20 सीटर जनसुविधा केंद्र एवं बस स्टैंड पर विशाल प्रतीक्षालय है। चमत्कार: समय-समय पर आरती के समय नागदेवता दर्शन देते है एवं कभी-कभी कुंडों में पानी के स्थान पर दूध की धारा बहती दिखती है। मंदिर की पूजा व्यवस्था के लिए सन् 1965 में एक ट्रस्ट का गठन किया गया जिसके पहले अध्यक्ष श्री विष्णुप्रसाद धतरा थे। वर्तमान में 5वें अध्यक्ष कुंजबिहारी पांडे जी है।

चरखारी से जुड़े 10 अनसुने तथ्य Near of Belatal Jaitpur

हम सभी चरखारी में कई वर्षो से रह रहे है | हम समझते है कि हम चरखारी के बारे में सब कुछ जानते है पर दोस्तों ऐसा नही है | चरखारी से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य भी है जिनके बारे में हमने पहले नही सुना | ऐसे ही कुछ तथ्यों के बारे में हम आज इस ब्लॉग में पढेगे|


1 चरखारी का किला मंगल गढ़ भी कहलाता है |  

  चरखारी के किले को मंगल गढ़ इसलिए कहते है क्योकि इसकी नीव मंगलवार को रखी गयी थी |
2. चरखारी का प्राचीन नाम वेद्सहिता है |
  
  चरखारी का यह नाम देववर्मन ,वीरवर्मन, हम्मीरवर्मन के लेखो  में मिलता है |
चक्रधारी मंदिर का मुख्य द्वार 
3. चक्रधारी मंदिर के नाम पर चरखारी का नाम पड़ा |


राजा मलखान सिंह के समय चरखारी का नाम चक्रधारी मंदिर के नाम पर वेद्सहिता से चरखारी पड़ा |


4. राजा छत्रसाल के पुत्र जगत राज ने चरखारी के किले का निर्माण करवाया था |


5. चरखारी के सभी मंदिर चंदेल कालीन है |
चरखारी नगर पालिका के पीछे का चित्र 
6. किले पर सात तालाब मौजूद है |

   
चरखारी किले के ऊपर सात तालाब है जिनके नाम क्रमशः बिहारी सागर, राधा सागर, सिद्ध बाबा का कुंड, राम कुंड , चौपरा , महावीर कुंड , बख्त बिहारी कुंड | 


7. ताल कोठी राजकीय अथिथि गृह था |
राजा विजय बहादुर ने  ताल कोठी का निर्माण करवाया था जो कि उस समय राजकीय अतिथि गृह था | यह ईमारत नेपाल कि शैली पर आधारित है |
  
8. ड्योढ़ी दरवाजा राजा मलखान सिंह के कार्य काल में बना |
    
   ड्योढ़ी दरवाजा राजा मलखान सिंह के कार्य काल में महाराष्ट के अभियंता एकनाथ ने बनवाया |
9. टोला तालाब राजाओ का आखेट (शिकार ) स्थल था |

राव बाग़ कोठी (चरखारी)

10. राजा अरिमर्दन सिंह ने राव बाग़ कोठी का निर्माण करवाया था |

   राजा अरिमर्दन सिंह ने नेपाल नरेश कि पुत्री से विवाह किया था उन्ही के लिए राव बाग़ कोठी का निर्माण करवाया था |

मस्तानी महल में शाम होते ही आती हैं डरावनी आवाजें


Uttar Pradesh News Portal : वीडियो: मस्तानी महल में शाम होते ही आती हैं डरावनी आवाजें

महाराज के राज्य के विस्तार के बारे में कहा जाता है कि इत चम्बल उत बेतवा और नर्मदा टौंस, छत्रसाल के राज में रही न काऊ हौंस। इतिहासकारों के अनुसार, मस्तानी राजा छत्रसाल की अंशज पुत्री थी। जो जहानत खां के दरबार की मुस्लिम नर्तकी और महाराज छत्रसाल से हुई संतान थी। महाराज छत्रसाल ने मस्तानी को पुत्रीवत पाला, पूरे जीवन कभी न हार न मानने वाले महाराज छत्रसाल को अपने अंत समय में मुगलो से सामना करने के लिए बाजी राव पेशवा की मदद लेनी पड़ी।
युद्ध में बाजीराव पेशवा और महाराज छत्रसाल की सेना एक होने की बात सुनकर ही मुगलो के हाथ पैर ठन्डे पड़ गए और उन्होंने अपनी सेनाएं वापस बुला ली। इस बात से प्रसन्न होकर महाराज छत्रसाल ने अपने राज्य के तीन हिस्से किये। जिसमे दो हिस्से अपने दोनों बेटो जगतराज और हिरदेशशाह को दिए तथा तीसरा हिस्सा मस्तानी को दिया। साथ ही महाराज छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा को उपहार के रूप में मस्तानी और उसके राज्य का तीसरा हिस्सा सौंपा था।
आज भी राजा की ड्योढ़ी के सामने मस्तानी महल है .किवदंतिया तो ये भी है राजा ने अपनी ड्योढ़ी के चबूतरे में अकूत संपत्ति दफ़न कर दी थी। जिसकी रक्षा अलौकिक शक्तियां करती हैं। कई बार धन खोदने की लालच में दफ़ीनाबाज रात में आये और डरावनी आवाजों को सुनकर भाग गए या वही बेहोश मिले। दफीनाबाजो द्वारा किये गए गड्ढे भी जगह-जगह साफ़ देखे जा सकते हैं। लेकिन ड्योढ़ी से आज तक कोई भी धन लेकर नहीं जा पाया।

इतिहासकार डॉ. सतीश ने बताया कि महाराज छत्रसाल का इतिहास जैतपुर कसबे जिसे बेलाताल के नाम से भी जाना जाता है। उनसे और बाजीराव पेशवा साथ ही मस्तानी जुड़ा हुआ है। महाराज ने मस्तानी और अकूत संपत्ति को उपहार स्वरूप बाजीराव पेशवा को सौंप दिया था। आज भी उस संपत्ति का काफी हिस्सा महाराज की इसी गढ़ी अंदर कैद है। जिसे किवदंतियो के अनुसार मंत्रो से अलौकिक शक्तियों द्वारा सुरक्षित किया गया था।


स्थानीय नागरिक  ने बताया कि शाम ढलते ही लोग इस महल के आस-पास आने से डरते हैं। उनका कहना है कि अँधेरा होते ही महल से तरह-तरह की आवाजे आनी शुरू हो जाती है। जिससे शाम ढलते ही महल के आसपास सन्नाटा पसर जाता है। कई बार दफ़ीनाबाजो ने धन निकालने कोशिश की तो वहां सैकड़ो की तादात में सांपो ने उन्हें घेर लिया और अंत में धन का लालच छोड़ भाग खड़े हुए। आज भी चार सौ सालो से ये महल खंडहर पड़ा हुआ है। इतिहासकारो के अनुसार यही महल महाराज छत्रसाल द्वारा मस्तानी को बाजीराव पेशवा को सौंपने का गवाह बना था।

पन्ना जिले के तालाब


Image result for पन्ना जिले के तालाबपन्ना जिला पहाड़ी, पठारी, ऊँचा-नीचा टौरियों एवं घाटियों वाला जंगली क्षेत्र है। यहाँ विन्ध्य, कैमूर एवं भांड़ैर पर्वत श्रेणियाँ हैं। पहाड़ों, टौरियों की पटारों एवं घाटियों को काटती हुई केन, व्यारमा, किल-किला, बरारी, बाघैन, पतनै बरमई, मीरा हसन, अतौनी एवं सिमरधा नदियाँ जिले में बहती हैं। जो जिले का बरसाती धरातलीय पानी जिले से बाहर करती रहती हैं। नदियाँ पठारी पहाड़ी होने से गहरी कम एवं चौड़ी ज्यादा हैं क्योंकि भूमि पर मिट्टी की परत कम है और चीपदार पत्थर (बलुई SANDSTONE) मिट्टी के नीचे बिछा हुआ है।

जिला का पश्चिमी, दक्षिणी एवं पूर्वी भाग ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों, शैल शिखरों एवं ऊँची-नीची घाटियों-खन्दकों वाला वनाच्छादित भू-भाग है। समतल मैदानी भूमि कम है जिस कारण नदियों के जल का बरसाती धरातलीय जल का उपयोग होना असम्भव ही रहा है। पहाड़ी क्षेत्र वन्य पशुओं, प्राणियों का अभयारण्य है। अमानगंज, सिमिरिया, पबई एवं रैपुरा परिक्षेत्रों में पहाड़ों की तराई में जहाँ कहीं जो भूमि समतल है, वह बलुई-रेतीली है, जिसकी मेड़बन्दी कर छोटे-छोटे खेत बना कर उनमें बरसाती पानी संग्रहीत कर धान एवं अरहर पैदा कर ली जाती है। मैदानी समतल भूमि को यहाँ हवेली कहा जाता है। भूमि पर दो-तीन फुट मिट्टी (बलुई रेतीली) की पर्त है जिसे फावड़े से काटकर वर्षा ऋतु में किसान छोटे-छोटे खेत बना लेते हैं जिनमें धान बो लेते हैं। सिंचाई के पानी की कमी के कारण गेहूँ की फसल जिले में न्यून ही की जाती रही है। हाँ, धान, कोदों, जवार मुख्य फसलें हैं जो वर्षा ऋतु की खरीफ की फसल में पैदा होती हैं, वह भी जहाँ कहीं।

पन्ना जिले की भूमि रचना तालाबों के निर्माण के माकूल नहीं है। इसी कारण जिले में तालाब अधिक नहीं पाए जाते। जो तालाब हैं भी, वह चीपदार पत्थर के खंडों एवं मिट्टी के बने हुए निस्तारी तालाब ही हैं। सिंचाई को जलप्रदाय करने वाले तालाब यहाँ कम ही हैं। अच्छे बड़े एवं दर्शनीय तालाब केवल पन्ना नगर में ही हैं, जिन्हें पन्ना के नरेशों ने नगर निवासियों की जलापूर्ति एवं निस्तार के लिये, जनसुविधा के लिये बनवाया था। पन्ना नगर में 4 तालाब बड़े हैं एवं 3-4 तालाब छोटे-छोटे हैं जो नगर के मध्य मुहल्लों में हैं-

धरम सागर, पन्ना- पन्ना नगर के पूर्वी किनारे एक पहाड़ मदार टुंगा नाम से जाना जाता है जो लगभग 1550 फीट ऊँचा है। इस पहाड़ के शिखर पर सूफी सन्त मदारशाह का मकबरा है। मदारशाह दया, धर्म एवं जनकल्याण की प्रतिमूर्ति थे। ऐसे महान धार्मिक सूफी सन्त की स्मृति में ही यह धरम सागर तालाब बनवाया गया था, जो मदार टुंगा पहाड़ की तलहटी में ही है। यह बहुत गहरा है, भूमि खोदकर बना हुआ है। नगर का सुन्दर तालाब है, जो एक झील-सा है। पहाड़ से झिर-झिरकर जल इसमें जमा होता रहा है जिससे इसका जल स्वच्छ एवं निर्मल रहता है। इसमें कमल भी होता है। इस सरोवर के कारण नगर के कुओं का जल स्तर ऊँचा बना रहता है।

लोक पाल सागर पन्ना- पन्ना के राजा लोक पाल सिंह (1893-97 ई.) ने अपने नाम पर ‘लोकपाल सागर’ तालाब का निर्माण कराया था। यह तालाब पन्ना नगर बस्ती से संलग्न, निस्तारी तालाब है जो पहाड़ी खेरा बस मार्ग पर है। इससे 500 हेक्टेयर से अधिक की कृषि भूमि की सिंचाई की जाती है।

बैनी सागर, पन्ना- बैनी हजूरी पन्ना राजा के कामदार थे। वह पराक्रमी लड़ाका के साथ-साथ जनहित कार्यों में भी दक्ष थे। उन्होंने अपने नाम से ‘बैनी सागर तालाब’ का निर्माण कराया था, जो बस्ती से संलग्न पुराने बस स्टॉप के पास है। वर्तमान में यह तालाब कीचड़, गाद एवं गौंड़र से पट चुका है। इसका जल भी प्रदूषित हो गया है। साफ-सफाई के बिना यह जनोपयोगी तालाब दुर्दशा भोग रहा है।

तिवारी तालाब, पन्ना- एक धनाढ्य तिवारी परिवार ने नगर में जन हितार्थ अपने नाम से तिवारी तालाब का निर्माण कराया था जो जन निस्तारी था। वर्तमान में यह तालाब कचरे से पट रहा है।

नृपत सागर तालाब- पन्ना के महाराजा नृपतसिंह ने अपने शासन काल में, पन्ना नगर के दक्षिणी पार्श्व में, कुंज वन के पास ‘नृपत सागर’ नाम से विशाल तालाब का निर्माण कराया था। वर्तमान में इस तालाब से पन्ना नगर निवासियों को पीने का पानी प्रदाय किया जाता है।

रामकुंड तालाब सारंग- सारंग ग्राम में रामकुंड नाम से प्राचीन तालाब है। इस तालाब को प्राचीन काल से पवित्र माना जाता है। अनेक मन्दिर, देवालय यहाँ हैं। मकर संक्रान्ति के अवसर पर रामकुंड सरोवर पर मेला लगता है। लोग इस तालाब में संक्रान्ति (मकर) के दिन बुड़की (डुबकी) लेने पर अपने को धन्य मानते हैं।

जोधपुर तालाब- गौड़वानी शासन काल में, शाह नगर एवं जोधपुर जोधा शाह गौंड राजा के राज्य के दो बड़े नगर थे। जोधाशाह का राजधानी मुख्यालय जोधपुर था तो उसने अपने शाह (शासक) नाम से शाह नगर कस्बा बसाया था।

जोधाशाह ने अपने जोधा नाम पर, रैपुरा भरवारा परिक्षेत्र के एक विशाल, पठारी ऊँचे पहाड़ पर किला एवं नगर जोधपुर स्थापित किया था। पहाड़ की चोटी समतल एवं लम्बी-चौड़ी है, जिस पर किला जोधपुर बना हुआ है जबकि बस्ती जोधपुर पहाड़ पर ही उत्तरी-पूर्वी पार्श्व में थी, जो अब वीरान, बेचिराग है। बस्ती के खंडहर एवं देवालय बिना देवों के खड़े हुए हैं। किला एवं बस्ती के मध्य विशाल मैदान है जिसमें किला से संलग्न दो तालाब हैं। तालाबों के मध्य से एक मार्ग (बाँध) बस्ती एवं किला को मिलाता है। बाँध मार्ग पर दोनों तालाबों के मध्य में हनुमान जी का मन्दिर है। तालाबों में कमल खिले रहते हैं। तालाबों के उत्तरी भाग में एक विशाल पगवाही बावड़ी (सीढ़ीदार बावड़ी) है जिसमें ग्रीष्म ऋतु में लबालब (ऊपर तक) पानी भरा रहता है। तालाब भी गर्मी की ऋतु में भरे रहते हैं।

जोधपुर नगर एक धन सम्पन्न नगर था जिसे छत्रसाल बुन्देला एवं बहादुर सिंह ने लूटमार कर, मकानों में आग लगाकर जलाकर लोगों को वहाँ से भागने को मजबूर कर दिया था। वर्तमान में पहाड़ पर मात्र 2 तालाब 3-4 बावड़ियाँ, कुएँ एवं हनुमान मन्दिर सही स्थिति में दर्शनीय हैं। मात्र यहाँ एक महन्त जी रहते हैं एवं क्षेत्र के सैलानी भक्त जन आते-जाते रहते हैं।

कुँवरपुरा का तालाब- ग्राम कुँवरपुरा में एक निस्तारी सुन्दर तालाब है। ग्राम कुआँ तालाब, अमदर तालाब, रैया सांटा तालाब, बांद तालाब, अमहा तालाब, पटौरी तालाब भी अच्छे निस्तारी तालाब हैं।

अजयगढ़ के तालाब- अजयगढ़, खजुराहो के बाद दूसरा पुरा संस्कृति नगर रहा है। यहाँ चन्देल काल में कालिंजर एवं खजुराहो जैसै धार्मिक सांस्कृतिक केन्द्रों के मध्य केदार पर्वत पर अजय पाल नामक एक राजस्थानी ऋषि रहा करते थे। अजय पाल ऋषि के नाम पर लोग केदार पर्वत को अजय पहाड़ कहने लगे थे। अजय पहाड़ बहुत ऊँचा रहा है जिसके शिखर तक पहाड़ी जंगल से चढ़कर पहुँच पाना कठिन था। इस पहाड़ के पश्चिमी भाग से केन नदी प्रवाहित है। वाघिन एवं बेरमा नदियाँ भी इसे पूर्वोत्तर भाग से घेरे हुए हैं। कूँड़े सी प्राकृतिक भौमिक संरचना के मध्य केदार पर्वत खड़ा हुआ है जो समुद्र तल से 1744 फुट ऊँचा है।

सन 830 ई. के लगभग चन्देल राजा जयशक्ति ने केदार पर्वत के शिखर पर अजेय दुर्ग ‘जय दुर्ग’ का निर्माण कर किला बनवाया था तथा किला के नीचे गोलाकार पहाड़ों के मध्य तराई में अजयगढ़ बस्ती बसाई थी। किला पत्थर की शिलाओं से बनाया गया था। किले के अन्दर ‘रंग महल’ बना हुआ है। जिसमें चंदेल राजा निवास किया करते थे। रंग महल और किला खजुराहो से भी अधिक आकर्षक है। सम्पूर्ण रंग महल आकर्षक नवयौवनाओं नर्तकियों, देवियों से चित्रित किया गया है, जिनकी मुद्राएं, भावभंगिमाएं व्यक्ति को चकित कर देती हैं, हैरानी में डाल देने वाली हैं।

अजयगढ़ दुर्ग के अन्दर, रानियों के तैरने, स्नान करने के लिये 2 केलि सारिणी (Swiming Pool) बनी हुई हैं। जिन्हें पहाड़ के पत्थर काटकर बनाया गया था। इनमें चन्देल रानियाँ तैरकर स्नान का आनन्द उठाया करती थीं। इन केलि सारिणियों को गंगा-जमुना कुण्ड कहा जाता है।

अजयगढ़ किले में दो तालाब हैं जिन्हें अजयपाल तालाब एवं परमाल तालाब कहा जाता है। वीर वर्मा चन्देल राजा ने किले के अन्दर ही अपनी रानी कल्याण देवी के नाम पर नन्दीपुर क्षेत्र में कल्याण सागर तालाब का निर्माण कराया था। अजयगढ़ दुर्ग (जय दुर्ग) में एक गहरी बावड़ी भी है जिसे बीरा नामक चन्देल ने बनवाया था। इसे बीरा की बावड़ी कहते हैं।

अजयगढ़ के पास दो तालाब हैं जो ग्रामों से संलग्न हैं। जो पोखना तालाब एवं खोई तालाब हैं वह चन्देलकालीन ही हैं। अजयगढ़ नगर में प्राचीन मिंचन तालाब है जो जन निस्तारी है।

रैपुरा के तालाब- रैपुरा पन्ना राज्य का पूर्वकालिक तहसीली मुख्यालय था। तहसीली कचहरी इमारत से संलग्न मिट्टी का बना हुआ तालाब है। तालाब के घाट पक्के बने हुए हैं। यह ग्राम का निस्तारी तालाब है। एक दूसरा तालाब गाँव के बाहर है, जो मिट्टी से भर चुका है। बाँध की केवल पैरियां दृष्टव्य हैं, समीप में श्री हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित है, जो धनुष बाण संधाने हुए है।

कुठार तालाब- कुठार ग्राम अजयगढ़ परिक्षेत्र में है। यह प्राचीन धार्मिक सांस्कृतिक स्थल रहा है। कुठार में माहिल पड़िहार का बनवाया हुआ एक सु्न्दर चन्देली तालाब है। माहिल पड़िहार उरई का था तथा परमालदेव का साला एवं रानी मलना देवी का भाई था।

दुर्गा तालाब- पन्ना राज्य शासनकाल का यह ऐतिहासिक तालाब था जिसका निर्माण चन्देलों के समय हुआ था। इस तालाब पर पन्ना राज्य के दो कामदारों-वैनीहुजुरी एवं चौबे खेमराज के मध्य भीषण युद्ध हुआ था।

सामान्यतः तो पन्ना जिला की भूमि कृषि काबिल है ही नहीं, परन्तु जो भूमि जहाँ समतल है, ऐसी भूमि पर छोटे-छोटे खेत बनाकर, उनकी ऊँची मेड़बन्दी कर छोटी-छोटी बंधियां बनाकर तलइयां सी बना ली जाती हैं। जिनमें धान की खेती की जाती है। बलइया घाटी की तलहटी में ऐसी सैकड़ों तलइया हैं।

.गंगऊ बाँध- सन 1912 ई. में ब्रिटिश सरकार ने केन नदी पर गंगऊ नामक स्थल पर पहाड़ों के मध्य गंगऊ बाँध का निर्माण कराया था। गंगऊ बाँध के नीचे जल प्रवाह को रोकने हेतु बरियारपुर में छोटा बाँध बनाया गया था, जिससे नहर निकालकर कुछ कृषि भूमि अजयगढ़ परिक्षेत्र की सिंचाई करती हुई, पूरा पानी बाँदा जिले की बबेरू तहसील को मिलता रहा है।

बड़ौर का तालाब- बड़ौर ग्राम पन्ना से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर मझगवाँ हीरा खदान के समीप है। बड़ौर में एक सुन्दर तालाब है जो निस्तारी है। उससे कुछ सिंचाई भी होती है। तालाब के बाँध पर एक सुन्दर शिव मन्दिर है जो क्षेत्र का प्रसिद्ध मन्दिर है।

इनके अलावा पन्ना जिले में निम्नांकित तालाब भी हैं-

दुबे तालाब, बृजपुर तालाब, सुनेहरा, तालाब, बराछ तालाब, आधार तालाब, विक्रमपुरा तालाब, रमपुरा तालाब, हाटपुर तालाब, जमुन हाई तालाब, भवानीपुर तालाब, मुठवा तालाब, रानीताल तालाब, भावतपुर तालाब, पवइया तालाब, ककरहाई तालाब, सुगरहा तालाब, राजा तालाब, कोहा तालाब, करही तालाब, चिरहाँ तालाब, कुँवरपुरा तालाब, खमरिया तालाब, ऊमरी तालाब, कुआँताल तालाब, बीरानाला तालाब, रैया साटी तालाब, बड़ागाँव तालाब, अमदर तालाब, कटरा तालाब, पड़रहा तालाब एवं अमहा तालाब। 

जालौन (उरई) जिले के तालाब

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तालाबों के निर्माण की आवश्यकता, क्षेत्र की भौमिक संरचना के आधार पर निश्चित की जाती है। पहाड़ी, पथरीली, राँकड़, ढालू, ऊँची, नीची भूमि में जल-संग्रह की अधिक आवश्यकता होती है। परन्तु समतल मैदानी, कछारी, काली मिट्टी वाले भूक्षेत्रों में कृषि के लिये कम पानी कती आवश्यकता होती है, जिस कारण वहाँ तालाब कम ही होते हैं। ऐसे क्षेत्रों में नगरों, कस्बों एवं ग्रामों के किनारे, धार्मिक-सांस्कृतिक कार्य सम्पन्न करने, दैनिक निस्तार क्रियाओं के निष्पादन, नहाने-धोने के लिये कच्चे मिट्टी के तालाब बना लिये जाते हैं, यदि नदियाँ-नाले बस्ती से दूर होते हैं तो ही।

जालौन जिला यमुना, बेतवा, पहूज, क्वारी एवं सिन्ध नदियों का मिलन क्षेत्र है। यह नदियाँ जगम्मनपुर-रामपुरा के पास पचनदा पर मिलती हैं। इन नदियों के भारी भरकम भरके, खन्दक एवं कटानें (RAVINS) हैं। नौंनी एवं मैलुंगा जैसी छोटी-छोटी नदियाँ ऐसे ही निर्मित हुईं हैं। जिला जालौन में निम्नांकित प्रसिद्ध सरोवर हैं-

माहिल सागर, उरई-चन्देल काल में उरई, पड़िहार सामन्त माहिल का क्षेत्र था। माहिल महोबा के चन्देल राजा परमाल देव का साला था, जिसने उरई नगर के मध्य में, झाँसी-कानपुर मार्ग पर, अपने नाम पर विशाल सरोवर बनवाया था।

ऐसी कहावत प्रचलित है, “उद्दालक की तपस्थली, उरई है अब नाम। राज मार्ग के बगल में सरवर ललित ललाम।।” इस तालाब में कमल खिले रहते हैं। तालाब के बाँध पर कजलियों का मेला लगता है। बाँध पर हनुमान मन्दिर है।

टिमरों की बँधियाँ- उरई के दक्षिण में 15 किलोमीटर की दूरी पर टिमरों ग्राम हैं, जहाँ पानी के बारे में यह कहावत है-

बावन कुआँ, चौरासी ताल।
तोउ पै टिमरों पै परो अकाल।।


अर्थात टिमरों में किसानों ने पानी की अपनी स्वयं की व्यवस्था के लिये 52 कुएँ और 84 बँधियां बना रखी हैं।

इटौरा का तालाब- इटौरा को गुरू का गाँव कहा जाता है। यहाँ एक जन-निस्तारी तालाब है। तालाब के बाँध पर गुरू रूपन शाह का मन्दिर है। मुगल सम्राट अकबर ने इसका नाम अकबरपुर रख दिया था।

कौंच का सागर तालाब- कौंच का सागर तालाब मराठा प्रबन्धक (सूबेदार) गोविन्द राव का बनवाया हुआ है। इस तालाब में गणेश जी का विसर्जन होता था।

चौड़िया (बैरागढ़) तालाब, कौंच- यह तालाब सन 1181-82 ई. में पृथ्वीराज चौहान के सामन्त चौड़ा (चामुण्ड राय) ने अपनी चौहान सेना के जल प्रबन्धन हेतु बनवाया था, जो 50 एकड़ क्षेत्र में था। तात्पर्य यह कि तालाब पृथ्वीराज चौहान के महोबा पर आक्रमण करने के वर्ष बना था। बैरागढ़ का मैदान युद्ध क्षेत्र था।

चन्द कुआँ, कौंच- पृथ्वीराज चौहान की सेना के साथ चन्दबरदाई भी थे। उन्होंने अपने नाम पर कौंच में यह चन्द कुआँ बनवाया था।

सन्दल तालाब, काल्पी- काल्पी में यमुना नदी प्रवाहित है, जहाँ कभी जल संकट नहीं होता रहा है। फिर भी ग्राम के मध्य में एक छोटा सन्दल तालाब था, जो पोखर के रूप में रह गया है।

हमीरपुर जिले के तालाब

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हमीरपुर जिले की मिट्टी काली, काबर, दुमट, हड़कावर एवं पडुआई है, जिसमें जल धारण क्षमता अधिक है, जिस कारण बिना सिंचाई किए भी ‘नगरवार’ गेहूँ (कठिया), चना, मसूर, अल्सी एवं सरसों पैदा किए जाते रहे हैं। इस जिले की भूमि समतल मैदानी है। पहाड़-पहाड़ियाँ अधिक नहीं है। यमुना, बेतवा जैसी जल भरी नदियों के होने से भूमि में नमी बनी रहती है। एक प्रकार से यह यमुना, धसान एवं बेतवा नदियों का कछारीय जिला है, जिस कारण जल का अभाव यहाँ कभी नहीं रहा। तालाब निस्तारी ही हैं, जिनका विवरण निम्नांकित है-

1. मौदहा के तालाब- मौदहा, हमीरपुर जिले का बड़ा कस्बा है। यहाँ 5 तालाब हैं। एक मीरा तालाब कहा जाता है, जिसका बाँध बड़ा सुन्दर है। इस पर कंस का मेला लगता है। बाँध पर अनेक उपासना स्थल बने हुए हैं। दूसरा तालाब इलाही तालाब कहा जाता है, जिसका बाँध भी लम्बा है। इसके बाँध पर सैयद सालार की याद में मेला भरता है। बाँध पर ही सैयद सालार की मजार है। इसके अतिरिक्त 3 छोटे तालाब हैं।

2. राठ के तालाब- राठ हमीरपुर जिले का प्राचीन नगर है जिसे महाभारत काल की विराट नगरी माना जाता है। विराट नगर को ही कालान्तर में राठ कहा जाने लगा था। ऐसी भी धारणा है कि राठ राठौर-वंशीय क्षत्रियों का ठिकाना था, जिसे 1210 ई. अर्थात तेरहवीं सदी के प्रारम्भ में बसाया हुआ कहा जाता है। बाद में यह शरफराउद्दीन के अधिकार में रहा, जिस कारण इसे शराफाबाद भी कहा जाने लगा था। परन्तु यह नाम लोकप्रिय न हो सका जिस कारण प्राचीन नाम राठ ही प्रचलित रहा। राठ में 7 तालाब हैं-

(1) सागर तालाब- राठ नगर का यह सबसे बड़ा एवं सुन्दर तालाब है जिसके घाट बड़े सुन्दर हैं। बाँध पर अनेक उपासना स्थल हैं। राठ हिन्दु-मुस्लिम गंगा जमुनी संस्कृति के मेल के लिए प्रसिद्ध रहा है।

(2) दीपा तालाब- यह गहरा एवं बड़ा तालाब है, जो निस्तारी तालाब है। राठ नगर के अन्य तालाबों में (3) कम्बू तालाब, (4) चौपरा तालाब, (5) घासी तालाब, (6) देव तालाब एवं (7) धुपकाली तालाब है।

हमीरपुर जिले की भूमि समतल है जिस कारण यहाँ कृषि की सिंचाई नहरों से की जाती है।

सन 1912 में धसान नदी के बाँध से नहर निकालकर यहाँ की कृषि भूमि को सिंचाई के लिये पानी पहुँचाया गया था। इस नहर की लम्बाई 632 किलोमीटर है।

सन 1916 ई. में जिले में लगभग 215 बँधियां पानी रोकने (खेत का पानी खेत में) के उद्देश्य से डलवाई गई थीं जो वर्षा ऋतु में तालाबों का स्वरूप ले लेती हैं।

सन 1975 में बेतवा पर पारीछा बाँध की नहर निकाली गई थी, जो लगभग 60 किलोमीटर लम्बी है। इससे जिले की अधिकांश कृषि भूमि की सिंचाई की जाती है।

हमीरपुर जिले में अनेक पम्प कैनालें हैं जिनमें शाहजना पम्प कैनाल, शोहरापुर पम्प कैनाल, पटपरा पम्प कैनाल, सिरौली बुजुर्ग पम्प कैनाल हैं, जो लगभग दस हजार हेक्टेयर भूमि के लिये सिंचाई जल देते हैं। पानी की सुचारू व्यवस्था से जिला धन-धान्य सम्पन्न, आत्मनिर्भर है।

बांदा जिले के तालाब Near of Belatal

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ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र में एक वामदेव ऋषि रहा करते थे, जिनके नाम पर इसको बांदा कहा जाने लगा था। इस जिले की भूमि भी पहाड़ी, पठारी, ऊँची-नीची, खन्दकी है। खन्दकी खन्दकों जैसी भूमि होने से वर्षा ऋतु में समूचे खन्दक छोटे-छोटे तालाबों में तब्दील हो जाते हैं, भूमि दलदली हो जाती है।

बाघन नदी जिले को दो भागों-उत्तरी-पूर्वी एवं दक्षिणी-पश्चिमी में विभाजित करती है। जिले की नीची भूमि मार पड़ुआ एवं काली कावर है लेकिन जो ऊँची भूमि वाला क्षेत्र है, उसे पाठा क्षेत्र कहा जाता है। पाठा क्षेत्र में पानी का अभाव है, भूमि रेतीली-सी, अनुपजाऊ है। नदियों की कछारों और पहाड़ों की पटारों की भूमि गीली एवं दलदली रहती है, जिसमें धान की खेती अधिक होती है। बांदा में विभिन्न प्रकार का धान (चावल) पैदा किया जाता है जो जिले से बाहर दूर-दूर तक निर्यात किया जाता है।

पाठा क्षेत्र (Upland Area)-पाठा (पठारी) क्षेत्र कर्बी एवं मऊ तहसीलों के मध्य का भूभाग है। यह टौरिआऊ, पथरीला, पठारी, ऊँचा, पहाड़ी एवं जंगली क्षेत्र है। भूमि राँकड़ है। जहाँ कहीं थोड़ी-सी काबिल काश्त भूमि है वहाँ कोल, भील, कौंदर एवं सहरिया (बनवासी) आदिवासी जातियों की झोपड़ियों वाली बस्तियाँ हैं। यह बांदा जिले का आदिवासी बहुल क्षेत्र है। वर्षा ऋतु (खरीफ) के मौसम में इस पाठा क्षेत्र में कोदों पैदा हो जाता है।

इस क्षेत्र में विन्ध्य की पहाड़ियाँ फैली हुई हैं। पहाड़ी, पथरीला भूभाग होने से ही इसे ‘पाठा’ (Upland Area) कहा गया है। पठार के मध्य दूर-दूर भरके नुमा तालाब भी हैं। जिनका ही पानी आदिवासी लोग पीते हैं। आदिवासी महिलाएँ टौरियाँ पहाड़ियाँ चढ़ते-उतरते दूर-दूर से मिट्टी के घड़ों में पानी लाती हैं। पहाड़ियों और टौरियों के मध्य एक भौंरा तालाब है जिससे आदिवासी महिलाएँ पानी लाते भारी कष्ट सहती हैं। परेशान होकर वे कह उठतीं है, “भौंरा तेरा पानी गजब कर जाय। गगरी न फूटे खसम मर जाय।” पाठा क्षेत्र के लोग जंगली जलाऊ लकड़ी बेचकर उदरपोषण करते हैं। कहा जाता है, “यह पाठा के कोल, जिनका प्यास भरा इतिहास है। इनका भूख भरा भूगोल है।”

बांदा जिले की यमुना, केन, चन्द्रावल, बाघन, पयश्विनी, चान, बरदाहा एवं गरारा नदियों की कछारी दलदली भूमि में वर्षा ऋतु में धान की खेती की जाती है। जिले में जो तालाब हैं, वह खुदेलुआ एवं छोटे निस्तारी हैं जिनसे कृषि के लिये कम पानी लिया जाता है। प्रमुख तालाब निम्नांकित हैं-

1. नवाब टैंक बांदा- नवाब जुल्फिकार अली ने यह तालाब बनवाया था जो नगर का निस्तारी तालाब है।

2. अलवारा तालाब, राजापुर- चित्रकूट जनपद के ग्राम राजापुर में अलवारा जन निस्तारी तालाब है।

3. खार तालाब, सीमू- बवेरू परिक्षेत्र के सीमू ग्राम में खार तालाब है, जो खुदेलुआ है। एक बड़ी बँधिया-सा है, कम गहरा है। यह तालाब जाड़ों के अन्त तक सूख जाता है।

4. दुर्गा तालाब, तरौहा- दुर्गा तालाब कर्बी से 5 किलोमीटर की दूरी पर, तरौहा के निकट स्थित है। यह बड़ा तालाब है। जननिस्तारी तालाब होने के साथ ही इससे कृषि सिंचाई के लिये भी पानी लिया जाता है।

5. राजा तालाब, बांदा- राजा तालाब बांदा के बुन्देला राजा गुमान सिंह (भूरागढ़) ने बनवाया था। यह तालाब बस्ती के मध्य में था जिसके चारों ओर खिरकों के रूप में बस्ती थी। वर्तमान में बांदा नगर का विकास होने से इसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।

6. फुटना तालाब, बड़ा कोटरा- यह चन्देली तालाब है। जो मऊ तहसील के अन्तर्गत है। यह तालाब फूट चुका है। इसीलिए लोग इसे फुटना तालाब कहते हैं।

7. कोठी तालाब, कटोेरा तालाब एवं गणेश तालाब, कर्वी- यह तालाब विनायक राव मराठा ने बनवाये थे। तालाब सुन्दर एवं जन निस्तारी है। गणेश तालाब पर गणेश मन्दिर है।

8. गौंड़ा का फूटा तालाब- यह तालाब नरैनी क्षेत्रान्तर्गत है जो चन्देल काल का है। यह दो पहाड़ों के मध्य छोटा बाँध बना कर बनाया गया है। यह सुन्दर बड़ा तालाब रहा, परन्तु जल भराव की अधिकता और देख-रेख की कमी के कारण फूट गया था जिससे इसे फूटा ताल कहा जाता है।

9. कालिंजर के तालाब- जिला बांदा तहसील नरैनी में कालिंजर पहाड़ पर कालिंजर किला है। किला की उत्तरी तलहटी में कालिंजर बस्ती है। कालिंजर किला भारत के प्रसिद्ध किलों में से एक है। कालिंजर पहाड़ के ऊपर, किले के अन्दर के प्रांगण में पत्थर काट-काटकर अनेक सुन्दर तालाबों का निर्माण किया गया था। चन्देल नरेशों के बनवाये तालाबों में गंगा सागर, मझार ताल, राम कटोरा, कोटि तीर्थ तालाब, मृगधारा शनिकुंड, पांडु कुण्ड, बुढ़िया का ताल, भैरों बाबा की झिरिया (भैरों कुण्ड), मदार तालाब, ब्राम्हण तलैया (बिजली तालाब) प्रसिद्ध हैं। पहाड़ के नीचे बस्ती में बेला ताल एवं गोपाल तालाब हैं।

10. लोखरी के तालाब- जिला बांदा, तहसील मऊ के अन्तर्गत लोखरी ग्राम है। ग्राम की कालिका देवी पहाड़ी की तलहटी में चन्देलकालीन प्राचीन तालाब है। इसी के पास कोटा कंडेला मन्दिर के पास भी एक छोटा तालाब है जो जन-निस्तारी है।

11. मड़फा के तालाब- नरैनी तहसील अन्तर्गत मड़फा पहाड़ पर कालिंजर के समकाल का विशाल चन्देली किला है। किले के अन्दर मन्दिर से संलग्न पत्थर काट कर विशाल सुन्दर तालाब का निर्माण किया गया था, जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसी के पास एक छोटा तालाब भी है, जिसमें केवल वर्षा ऋतु में पानी रहता है।

12. रासिन के तालाब- नरैनी तहसील अन्तर्गत के रासिन कस्बा है, जो चन्देल काल में पहाड़ी पर था। चन्देल काल का एक तालाब पहाड़ पर पत्थर काट कर बनाया गया था। जो लम्बाकार है। एक दूसरा छोटा तालाब पहाड़ी के नीचे बलन बाबा मार्ग पर है।

13. लामा के तालाब- बांदा से चिल्ला मार्ग पर 13 किमी. की दूरी पर लामा ग्राम है, जहाँ 5 तालाब हैं जो बोलवा, धोविहा, गुमानी, मदाईन एवं इमिलिहा हैं। यह सब निस्तारी तालाब हैं।

14. अरहर एवं मानिकपुरा ग्रामों में भी छोटे-छोटे एक-एक तालाब हैं।